अधूरे आधार | Adhoore Aadhar

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Adhoore Aadhar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मधुरे आधार | १७ फिर भी यदि तुम कहो तो न न मेरा यह उद्देश्य नही । शायद तुम ठीक ही सोच रही हो । अभी बाकी है मेरे लिए तुम्हारा विश्वासपात् बनना 1 चलो, देर हो रही है । म्॒हूर्त बोठ जायगा ।? मेरे पैर उठ नहीं रहे थे मानो किसी ने सिर पर भारी बोझ लाद दिया था। भार लेकर में नये घर जा रही थी जबकि मुझे मुक्तमन जाना चाहिये था। द्वार बद कर और चाबी पर्स मे रख हम दोनो नीचे उतरे । मैंने सचालिका से मिल लिया । बाहर जा रही हूँ--ऐसा कह दिया-- अपने एक सम्बन्धी के साथ । सचालिका के ऑफिस से निकली तो सतीश ने मेरा स्वागत करते हुए टैक्सी में छुके बेठाय। और फिर वह बैठा 1 अदर बैठते ही उसने पुछा--'सामान को चचा से तुम्हे दु ख हुआ समता है ? मुझे सचमुच इसका दु ख है। मुझे तुम्हारे सामाव की कोई अपेक्षा नह्ठी थी, थू ही पूछ बेठा था । मैंने सोचा था कि तुम आजओगी ती सामान भी साथ लेती चलोगी । इसीलिए टेवसी लेकर आमा था। खेर अब इसे भूल जाये । मैंने अपन नये घर को तो सजा ही लिया है ।” उसके नये घर की कोई कल्पना मेरे मन मे उभर नही पा रही थी । उसके घर पहुँचने पर भी मन मे किसी प्रकार कौ प्रसन्नता पैदा न द्दी पायी । मकान मालकित आगन में काड, लगा रही थी। भाड, को एक ओर रख अपने आचल को सम्हालती वह बोली 'तुम समय से आ ग्ये । तो ये तुम्हारी पत्नी हैं ?? सतीश इसका क्या उत्तर देता दै, इय जिज्ञासा से मैन उसकी गोर दषा पर तथ सतीश मेरी भोर देख रहा था। शायद वह सोच रहा था कि क्या जवाब दे जो मुझे उचित लगे या कम से कम बुरा तो न लगे ! मुझे उसकी और हसदर्दी भरी निगाहों से देखना चाहिये था पर मुझे ऐसा सवाल अच्छा नही लगा था। मैंने मुह केर लेना चादा था प्र वैसा न कर पाकर सतोश छी जोर ही देखतो रह गयो थी। मानो मैं उसकी




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