दीप जलेगा | Diip Jalegaa

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Diip Jalegaa by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुशते दीप से जलते दीप तक दीप? में यों तो पन्द्रह कविताएँ हैं, पर यदि आधार-भूत-मंड को लिया जाय तो यह सारे का सारा संग्रह एक लम्बी कविता दिखायी देगा । लिखने के कम में विदा? चाहे दूसरी कविता है, पर किसी पत्र-पत्रिका में छपने के क्रम में पहली है । अश्क जी की वह पहली हिन्दी कविता है जो किसी प्रमुख हिन्दी पत्र में छपी और वयोंकि उसमें भावनाओं के व्यक्ति- करण में एक खरापन (४०८४४०० ०८६५४) था, इसीलिए बहुत लोकप्रिय हुई। हुआ यों कि वह कविता लिखकर अश्क जी ने योंही पंडित बनारस दास जी चतुर्वेदी को भेज दी । ( उनसे लाहौर में परिचय हो गया था और पत्र-व्यवहार तो पहले से था | ) चतुर्वेदी जी को यद्यपि अश्क जी की एक भी कद्दानी पसंद न आयी थी, पर वह कविता उन्हें इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने न केवल उसे छापने का अनुरोध किया, बल्कि उसकी एक नकल श्री माखनलाल जी चतुर्वेदी को भेज दी । अश्क जी ने हिन्दी में कभी कविता लिखी न थी । उन्होंने चतुर्वेदी जी को लिखा कि उसमें कोई भुटिनदहो 1 चतुवेदी जी ने उत्तर दिया कि सुफे तो इसमें कोई त्रुटि दिखायी नहीं देती । आपकी अनुमति हो तो इसे छाप दूँ। ओर उन्होंने विशाल भारत के उसी अंक में ( जो कदाचित अधिकांश प्रेस में जा चुका था ) पिछले प्ृष्ठों पर वह कविता छाप दी। श्रश्क जी सममते ये कि कविता प्रष्ठ डद प्रष्ठ पर शन से छपेगी, इसीलिए उसे उस प्रकार दबी-सिसटी अवस्था सें पिछले प्ृष्ठों पर छपी देखकर उन्हें प्रसन्नत नहीं हुई ! पर जब कुछ हो दिन बाद चतुर्वेदी जी ने लिखा कि कविता बेहद पसंद कौ गयौ रै ओर कानपुर से हिन्दी के ग्रसिद्ध कवि श्री ग्यारह




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