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Khabar by प्रणव कुमार - Pranav Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कभी मौक़। लगे तो तुम भी एक हाथ मार लेना. बात खत्म कर भगीरथ ने जगदम्बा की तरफ़ आंख मार दो थी. जगदम्बा चेहरे को संजीदा कर सिर्फ़ दीवार की तरफ़ देख रहा था. भगीरथ ने दुबारा उसे घ्रा और सीने में दाहिना हाथ रखकर एक बनावटी सांस ली. यह सब एकदम से नहीं हो गया था. न यह सिर्फ़ नाटकीय ही है. भगीरथ को मालूम है, जानकी के पीछे जगदम्बा कंसी-कंसी आहें भरता रहा. माचिस फैक्ट्री वाली नौकरी लग गई तो सोचा था, अब जब क्रिस्मत का बदलना शुरू हुआ, सबकुछ छ बदल कर रहेग।. एकदम ही उसे लगता रहा कि जानकी गुजरते वक्‍त कनखियों से उसे निहार लेती है. फिर र।त को चारपाई पर लेटकर कसमसाती होगी, सपने देखती होगी, यह सब जवानी में (किसका नहीं होता ? लेकिन लोग इतने डरपोक हैं कि अरमानों का खन कर देते हैं. य[द है, जानकी एक बार नीम के नीचे अ।ई थी. बफ़ की मिठाई त्ररीदनी थी. बफ़ छीलते हुए जगदम्बा ने जानबूझकर बहुत देर लगा दी थी. तैयारी कई तरह से करता रहा ले।कन हिम्मत नहीं हुई कि कहे-- तू मेरी नींद हराम कर रही है जानकी- तेरे लिए मैं सबकुछ छोड़ सकता हूं --अपने बच्चों को, कलूटी बीवी को, सबको ***. अ।खिर तक वह सोचता रहा और फिर कुछ भी कहे बिना मिठाई उसकी तरफ़ बढ़ा दी थी. जानकी ने दस का सिक्का आगे बढ़ाया तो जगदम्बा ने मना कर दिया था-- रख ले इसे अपने पास. जगदम्बा की तरफ़्से एक भेंट ही समझ ले. जानकी कुछ भी बिना समझे कोई मिनट-भर खड़ी रह गई थी. फिर जैसे एकदम से कुछ याद आ गया था. तेजी से निकल गई थी आखिर में. जगदम्बा बहुत खुश था उस दिन- इसका गवाह भगी रथ है. शाम को दूकान- दारी के बाद वह भगीरथ को मूलचंद की भट्टी तक ले गया था. फिर एक पूरे गदे के साथ पकोड़ियां और तली हुई मछलियां खिलाई थीं. भगीरथ अपने हिस्से को पा- कर 'होटल' में लौट आया था लेकिन -जगदम्बा वहीं रह गया था. बाद में मालूम हुआ था, जुए में पूरी जेब साफ़ करा लेने के बाद उसने अपनी कमीज और पाजामा भी उतार दिया था. आखिर में बनियान और कच्छे में जब घर लौटा, उसकी बीवी दीवार से सर पटक रही थी. लेकिन औरत अपनी हद से आगे बढ़े तो उसे और लोग सहते होगे, जगदम्बा सह नहीं पाता. सहे भी क्यों ? जिस मरद के सीने में बाल होते है, जोरू का गुनाम नहीं होता कभी वह्‌- लिहाजा अपनी मर्जी के खिलाफ़ कुछ हुआ तो यद्‌ सह। नही जाता जगदम्बा से. जवाब मं उसने वही किथा, जो अब तक करता रह्‌। 2. यानी बीवीके बालका मुटटीमें कसकर एक हाथ से पकड़ा ओौर दूसरे हाथ से चांटे जम। दिए. आख़िर में पेट पर लात जमायी. वह दर्द से कर.ह उठी थी. लेकिन इस घटना से जानकी का रिश्ता ही क्या है ? रिश्ता न होगातो न सही लेकिन जगदम्बा का कोई और चारा भी तो नहीं है. जानकी दिल को इस कदर वेकाबू कर देती कि फिर खुद को संभाल पाना मुश्किल हो जाता. जब माचिस फंक्ट्री की नौकरी लग गई. जगदम्बा को जैसे ऊपर पहुंचने की सीढ़ी मिल गई थी. बिहा पंडित रामनामी ओढ़े यजमानी में जा रहे थे. जगदम्ब। ने झुककर पांव छू लिए थे-- इस ग़रीब को भी कभी-कभी आशीर्वाद देते रहा करो, पंडिज्जी. बिहानिवास ने अपनी आदत के मुताबिक कहा था--सुखी रहो, बेटे. जगदम्तबा मुस्कराया था--आपकी किरपा हो तो बस सुख ही सुख है. फिर वह संभलकर खड़ा हो गया था--ज़रा एक बात कंनी थी पंडिज्जी. --कहो. 16




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