अलंकार | Alankaar
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)षषे ३
स्वापी श्रद्धानन्द
२६७
वकष জা চাই চি ই হি টিন ই চি ও লিও চি ওহ টি রর সিন 8 চন হি লি किति द द क के षते किच कषे के कनि नि कवि जि
फल स्वरूप नहीं है, अपितु निज की ही
अकतञ्रिम वास्तविकता मैं हे,
विधाता जब दुःख को हमारे पास
भेजता है तब वह अपने साथ एक
प्रत्ष लेकर आता है | वद हम से
पूृछुतां है कि तुम हम को किस भाव
से ग्रहण करोगे ? विपद श्राचेंगी
नहीं ऐसा नहीं हो सकता-- सड्डुट
का समय उपस्थित होता हे, उद्धार
का कोई भी उपाय नहीं रहता, किन्तु
जिस प्रकार विपद् का हम व्यवहार
करते हैं इसी के ऊपर प्रश्न का सद॒ु-
त्तर निर्भर है । किसी पाप के उपस्थित
होने पर हम डस से डरे वा उसके
सन्मुख श्रपना सिर क्ुकावें ? श्रथवा
उस पाप के घिरुद्ध पाप द्वी को অক্লু-
खीन करे, मृत्यु के घात दुःख के
आघात के ऊपर रिपु की उन्मत्तता का
जागत करे ! शिशु के आंचरण में
देखा जाता है कि जब वह गिरता है
तब वद्द उल्टे ज़मीन ही को मारता हे।
घह जितना ही भारता है, फलखरूप
उसको उलटा ही लगाना है । परन्तु
यदि किसी वयस्क की ठाकर लगता
है तो वह सोचता है कि वह किस
प्रकार दूर की जावे | परन्तु हम देखते
हैं कि किसी समय बाहर के आक-
स्मिक आघात की चमक में मनुष्य
भी शिशु की बुद्धि बाला हो जाता है।
षह उस समय सोचता है कि धैर्य
का अवलम्बन करना हो कापुरुषता
है, क्रोध का प्रकाश करना ही पौरष
है। हम यह स्वीकार करते हैं कि
आज दिन स्वभावतः ही क्रोध आवचेगा,
मानव প্র লী बिल्कुल छोड़ा नहीं
লা सकता। किन्तु यदि क्रोध से अभि-
भूत हो तो वह भी मानव-धर्म नहीं
है। आग के लग जाने पर यदि सब
कुछ भस्म हो ज्ञावे तो आग की रुद्रता
लेकर आलोचना करना बृथा है।
विपद सभी पर आती है, ज्ञिकके पास
उरूके प्रतिक।र के उपाय नहीं हैं वे
भो दोषी हैं ।
भारतवर्ष के अधिवासियां के मुख्य -
तया दो भांग हैं- हिन्दू और मुसल
मान । य द् हम यह समझे कि मुसल-
मानों को एक ताक में रख देश की
सभी मदड्जडल चेष्टाओं में सफल होगे
तो यह भी एक बहुत भारी भूल है।
हमारे लिये रूब से ज्यादा अ्रमंगल
»र दुगेति कां दिषय यह है कि
मनुष्य मनुध्य के पास रहता हे किन्तु
उनके मध्य किसी प्रकार का सम्बन्ध
नहीं रहता। विदेशी राज्य में राजपुरुषों
के साथ हमारा एक वाह्य योग-दल
हे, किन्तु आन्तरिक सम्बन्ध नहीं
रहता । विदेशो राजत्व में यही हमारे
लिये सब से अधिक पीडाजनक है।
इंसी से आज हमें देखना होगा
कि हमारे हिन्दू समाज में कहां कोन
सा छिद्र है, कौन सा पाप है, अति
निरभेय भाव से उस पर हमे आक्रमण
करना होगा। इसी उद्द श्य को लेकर
आज हिन्दु खमाज को अवाहन करना
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