विद्याधरी | Vidhyadhari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.21 MB
कुल पष्ठ :
608
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गिरिजानंदन तिवारी - Girijanandan Tivari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू हें जे
इनका ऋण भो बेतद्ाशा बढ़ने लगा । आन मेवेवाले
तकाज़ाकी भ्ाते, कल डाकटरका बिल पहुंचता, भोरको
कपड़ेवाले मांगते, सन्ध्याकों बफंवासी तकाज़ा करते ।
किसीने तमस्मुक को नालिश कौ नोटिस दो, किसोने दो
चार खरी खरी मनाई, यहां तक कि उनका दिनको घर
मे बाहर निकलना भारो हो गया था ।
रायसाइवकों नथेने वेतदाशा दुबेख कर दिया था,
दिन भर आप नशेद्दोमें चूर रहेते थे। जब आप सो कर
उठे पेख़ाने से छुट्टी पा पहले अफीम खा लेते थे तब जञस-
पान किया फिर भोजन तक बराबर दमपर दस गांजा
भॉका करते थि । भोननकर दो पह्रको अरास करते थे।
सोकर उठने पर मदक चलती थो । फिर शामकी शराव
पौना तो अवश्यद्दो था । दूसरे सूजाक, गर्मी, बाघो एक
नणएक बीसारो बराबर बनोछों रइतो थी जिससे शरीर
सतप्राय दो गया था ।
एक दिन आप चुन्नौके यद्दां पहुँचे तो वा देखते क्या
हैं कि व वैठो एक मज्ुष्य से सो कर रहो है, इन्हें यह
देख बड़ा रंज झुआ। चुन्नोने इनको कुछ पर्वाच न की,
उससे अठखेलियां करतीछो रही । रायसाइवस रा न
गया आपेसखे वाइर हो गये, कुक कइछौ बैठे । चुन्नोमे थो
इनको सुझतोड़ जवाब देना शुरू किया । यद्ांतक नौवत प-
इंचौ कि चुन्नोने रायसाइवको सकान ये निकल जाने कहा ।
कि व व वन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...