देखा परखा | Dekha Parkha

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Dekha Parkha by जगदीशचंद्र जैन - Jagdishchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आर पाल-पोसकर उनका शादी-विवाह करना है, तो उन्हे गह-कार्य की शिक्षा तो अवश्य दी जानी चाहिए---यह सोचकर ही सम्भवतः पुत्रियो को गीत, सत्य, वाद्य, काव्य, नाटक, चित्रकर्म, मुखमण्डन, पुष्प-गुथन, आमरण- परिधान, केश-बन्धन, वशीकरण आदि कला विज्ञान की शिक्षा देने का अयोजन किया गया हो जिससे अपनी कला के द्वारा वे अपने श्वसुर-णह के लोगों को मुग्ध कर सके | पृथ्वीचन्द्रचरित्र ( पृ० ६६-१०० ) मे उल्लेख है कि जब राजकुमारी रत्नमंजरी पढने योग्य हो गई तो उसके माता-पिता ने उसे एक परिडत को सोप दिया ओर परिडत जी ने उसे पढा-लिखाकर ७२ कला श्रौर ६४ विज्ञान मे निष्णात कर दिया । इससे मालृम देता है किं १५ वी सदी के श्रासपासं राज-कन्याओ को गीत, दूुत्य आदि विषयो की शिक्षा दी जातो थी । योग्य वर की खोज प्राजकल की मति उस जमाने मे भी कन्या का विवाह करना एक बडी मारी समस्या थी । योग्य वर को पा लेना आसान काम नही था, फिर दहेज के लिए रुपए का प्रबन्ध करना आवश्यक था | प्रायः योवन के लक्षण दिखाई देने के पहले ही कन्या का विवाह कर दिया जाता था। किसी षोडशी को देखकर ही सम्भवतः किसी कवि ने कहा है-- धरणि मत्त मश्र॑गजगासिशि खंजणलोश्रणि चन्दमुही चचलजुव्वण जातण जाणहि डल समण्पहि काद्‌ ही ( प्रात पैंगल १-२२७ ) श्र्थात्‌ हेः मत्त गज की चाल चलनेवाली ।! खजन के समान लोचनों- वाली । चन्द्रमुखी बाले ! चचल यौवन को बीतते देर नहीं लगती, इसलिए तू अपने-आप को क्‍यों किसी छेल-बॉके को समर्पित नहीं कर देती ! कभी ऐसा भी होता था कि वर ओर कन्या स्वय एक दूसरे को पसन्द कर लेते थे और उनका विवाह हो जाता था । पठमसिरि हस्तिनापुर के शख नामकृ धनपति की कन्या थी । एक बार बसन्तोत्सव मनाने के लिए वह श्रपनी सखियों के साथ सज-धजकर नगर के बाहर किसी उद्यान में क्रीडा करने गई | जब वह अपनी सखियो के साथ माधवी-मडप मे विश्राम कर रही थी, तो वर्ह साकेत का राजकुमार समद्रदत्त त्रा पहुँचा | पठमसिरि की सखी बसन्त सेना ने समुद्रदत्त को अपनी सखी का ** अपभ्रश साहित्य में नारी #*% १९




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