देखा परखा | Dekha Parkha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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No Information available about जगदीशचन्द्र जैन - Jagadish Chandra Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आर पाल-पोसकर उनका शादी-विवाह करना है, तो उन्हे गह-कार्य की शिक्षा
तो अवश्य दी जानी चाहिए---यह सोचकर ही सम्भवतः पुत्रियो को गीत,
सत्य, वाद्य, काव्य, नाटक, चित्रकर्म, मुखमण्डन, पुष्प-गुथन, आमरण-
परिधान, केश-बन्धन, वशीकरण आदि कला विज्ञान की शिक्षा देने का
अयोजन किया गया हो जिससे अपनी कला के द्वारा वे अपने श्वसुर-णह के
लोगों को मुग्ध कर सके |
पृथ्वीचन्द्रचरित्र ( पृ० ६६-१०० ) मे उल्लेख है कि जब राजकुमारी
रत्नमंजरी पढने योग्य हो गई तो उसके माता-पिता ने उसे एक परिडत को
सोप दिया ओर परिडत जी ने उसे पढा-लिखाकर ७२ कला श्रौर ६४ विज्ञान
मे निष्णात कर दिया । इससे मालृम देता है किं १५ वी सदी के श्रासपासं
राज-कन्याओ को गीत, दूुत्य आदि विषयो की शिक्षा दी जातो थी ।
योग्य वर की खोज
प्राजकल की मति उस जमाने मे भी कन्या का विवाह करना एक बडी
मारी समस्या थी । योग्य वर को पा लेना आसान काम नही था, फिर दहेज
के लिए रुपए का प्रबन्ध करना आवश्यक था | प्रायः योवन के लक्षण दिखाई
देने के पहले ही कन्या का विवाह कर दिया जाता था। किसी षोडशी को
देखकर ही सम्भवतः किसी कवि ने कहा है--
धरणि मत्त मश्र॑गजगासिशि
खंजणलोश्रणि चन्दमुही
चचलजुव्वण जातण जाणहि
डल समण्पहि काद् ही
( प्रात पैंगल १-२२७ )
श्र्थात् हेः मत्त गज की चाल चलनेवाली ।! खजन के समान लोचनों-
वाली । चन्द्रमुखी बाले ! चचल यौवन को बीतते देर नहीं लगती, इसलिए
तू अपने-आप को क्यों किसी छेल-बॉके को समर्पित नहीं कर देती !
कभी ऐसा भी होता था कि वर ओर कन्या स्वय एक दूसरे को पसन्द
कर लेते थे और उनका विवाह हो जाता था ।
पठमसिरि हस्तिनापुर के शख नामकृ धनपति की कन्या थी । एक बार
बसन्तोत्सव मनाने के लिए वह श्रपनी सखियों के साथ सज-धजकर नगर के
बाहर किसी उद्यान में क्रीडा करने गई | जब वह अपनी सखियो के साथ
माधवी-मडप मे विश्राम कर रही थी, तो वर्ह साकेत का राजकुमार समद्रदत्त
त्रा पहुँचा | पठमसिरि की सखी बसन्त सेना ने समुद्रदत्त को अपनी सखी का
** अपभ्रश साहित्य में नारी #*% १९
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