निः श्वास | Nishwaas

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Nishwaas by रामकुमारी चौहान - Ramkumari Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निःश्वास वेदना में सुख का आनन्द, गरल मे लाता अमृत ढूँढ़॥ प्रण को चिर तृष्णा से प्यार, आह में लुप्त गेम का क्षेम। विभो ! इस जीवन संसति-बीच, प्रकृति का क्या विचित्र है नेम ! लालसा मिलन सींचती रहे, हृदय-कानन के शुष्क प्रसून । रहे करुणा का अविचल राज्य, बदलता अश्रकर्णों में खून ॥ कहा इस कोलाहल से दूर, लाथ ¦! सुनना नीरव भकार | जोड़ देना दृग-रस से देव ! विकल वीणा के टूटे तार॥ पिघल बह जये मन का मैल, मिले विच्छेद्-व्यथा उपहार । बिखरने दो चरणो पर नाथ, दुखी का कोमल निबल प्यार ॥




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