साहित्य चर्चा | Sahitya Charcha

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Sahitya Charcha by ललिता प्रसाद सुकुल - Lalita Prasad Sukul

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सच्ची वीरता और आत्मत्यागके जोशसे वे किस कदर लबालरूब हैं। कौन विद्वान यह कहनेका साहस कर सकता है कि भारतीय खाहित्यमें देश प्रेम अथवा राष्ट्रप्रेमके लिये स्थान ही नहीं था, अथवा 290080 1০৮০৪, জবা आइ्वान तो अब केवल वत्तेमान युगकी नवीनता है? ऐसा कहना केवल उनके अज्ञानका सूचक हो सकता है। और रासो साहित्यने ऐसे बीर उत्पन्न कर दिखाये जिन्होंने दुदि नके अन्धकारमे भी स्वतन्त्रता मौर आत्म-संगठन का राग अलछापकर झ्त॒तप्राय आये जातिको फिरसे जिला- नेका सफल प्रयत्न किया था । महाराज छत्चसाल और चीर-शिरोमणि शिवाजीकी अमर कीत्ति में कविचर छाल ओर भूषणका कितना भाग है, यह बतानेकी आवश्यकता नही । यह सी तो राष्ट्र-निर्माणकी ही एक सीढ़ी थी । अब यदि इस पाश्वंको छोड़कर राष्टरके मानसिक सग- उनकी ओर हम द्वष्टिपात करें दो कबीर, तुलसी, सूर नानकः, रेदास, सहजा, विद्यापति, चन्द्‌, गिरिधर, दाद्‌




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