प्रेत की छाया | Pret Ki Chaya

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Pret Ki Chaya by ज्योतिन्द्रनाथ - Jyotindranath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च्छ তা আক শি শালি के ५० प्रेत की छायी ' श्रुत लम्बी कहानी है । निश्चिन्त होकर कहूँगा |? (पं तो समभाता था, श्रव तुमसे भेंट न होगी)» “मुझे अभी बहुत काम करना है, भाई ! इतनी जल्‍दी न महँगा। दुनिया में आया हूँ, तो कुछ करके जाऊँ गा, इुनिया को कुछ देकर আজ মা” आनन्द हमेशा इसी तदहे की व्व कर्ता था, मानो उसे अपनी हंक- लता पर और उज्ज्वक्न भविष्य पर पृश् मरीखा हो | बहुथा मुझे ताज्जुंब होता कि वैरी प्रतिकूल परिस्थितियों भे रह कर भी अपना यह विश्वास .. बेड कैसे कायम रख सका। इन नातों को ले, कई लोग उसकी हँसी : उंडते थे । पर कोमल शरीराले आनन्द में बहुत हृढ़दा थी, बह कमी विचल्षित न होत। | भोजन श्रादि से निषत्त हौ त्रानन्द खून भरी नीद सीया । दूसरे दिन एके पहर दिन बीता, तमे उसकी नींद्र टूटी | “ मैंने मी थका-माँदा जान, उसे छेड़ना उचित न समभा । न जाने कितने दिनों बाद उसे इस तरह उट कर, भोजनं कजे के बद्‌ संतोष श्रौं एल क्र ` मीढ नीद - ॐ सोने को अवसर मिला था! ` उसने वैद थता की ধাঁ, রনি নিধন: श्रनिश्चितता थी और कितना खतरा था ! ' = = ‡ ९ রা ९ ~ य [| = = 888 के ६ ४, ) उस दोपहर को इस दोनों बहुत देर ठक तिं कर्ते षे) अरनिः ने विस्तारपूवक समी बात, ५. বউ ছা হলি ইল এন কী 4 ५ / ৯ সির, অই धि বসি > এ ~ ५ টি न क ~ ~ নিন এ পিউ, 1 দি ५ (9 एज ह 3 টু 1554 পঠিত জট ৯ 7 क 3 «८३, प = दद ५0%. 20 উপ




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