दक्षिण में हिंदी - प्रचार - आंदोलन का समीक्षात्मक इतिहास | Dakshin Me Hindi - Prachar - Aandolan Ka Smikshatmak Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) राजभाषा की समस्या को लेकर देश में फिरसे तृफान उठाने की कोशिश की जा रही है। आज इसका नग्न दृश्य हम देखते हैं | मैंने अपने इस अन्य में भाषामूठक समस्याओं पर गाँधी जी के कई भाषण के उद्धण प्रस्तुत किये हैं। मेरा विश्वास है कि दक्षिण के हिन्दी अध्यापक और अध्येता उनकी विचार-घारा से अवश्य छाभान्त्रित हो सकेंगे | इस ग्रन्थ-रचना के लिए मेंने दक्षिण-मारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा प्रकाशित सभी पत्र-पत्रिकाओं को पुरानी फाइलों की छान-त्रीन करके ही अधिकांश सामग्री जुटाई है, अन्यत्र इतनी सामग्री कहाँ मिल सकती है ! श्री सत्यनारायण अभिननन्‍्दन ग्रन्थ? में दक्षिण के चारों प्रान्तों के हिन्दी प्रचार-का्य की झाँकी दिखाते हुए कुछ लेख प्रकाशित किये गये हैं। उन लेखों से भी मैंने आवश्यक सहायता छी है। तद॒थ मैं उस ग्रंथ के विज्ञ छेखकों का बड़ा आभारी हैँ । मेरे आदरणीय मित्र श्री एन. वेंकटेश्वरन्‌ , ( परीक्षा-मन्त्री दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास ) तथा श्री सी. जी, गोपाल्कृष्णन्‌ ( संगठक, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा केरल शाखा ) ने इस अन्थ निर्माण की सामग्री जुयने में मुझे काफी सहायता पहुँचाई है। श्री ड. मास्करन्‌ नायर, ( अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कैरल विश्वविद्यालय ) की प्रेरणा और प्रोत्साइन इस काये को शीघ्र पूरा करने में अत्यन्त सहायक रहा है; अन्यथा इतनी जल्दी इसका पूरा होना असंमव दहोता। हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास के संस्थापक तथा आदि प्रवर्तेक पं० हरिहर शछर्माजी तथा प० शिवराम शमौजी इस ग्रन्थ की पांडुलिपि का कुछ अंश पढ़ कर बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने इस अन्थ रचना पर कुछ आश्ञीवेचन लिपिबद्ध कर के दिये हैं जो इसमें अन्यत्र प्रकाशित हैं। मेरे इस प्रयत्न में हार्दिक सहानुभूति दिखा कर मेरे उत्साह को बढ़ानेवाले उन सभो महान व्यक्तियों का में चिर ऋणी हूँ । दक्षिण के हिन्दी प्रचार आन्दोलन का कारय-क्षेत्र मुख्यतः तमिलनाडु, आन्म, कर्नाटक और केरल रहने से उन चारों प्रान्तों का अछग-अलूग बृहत्‌ इतिहास छिखा जा सकता है। पिछके ४५ वर्षों की लंबी अवधि में दक्षिण के कोने-कोने में हिन्दी प्रचार का प्रचरु आन्दोखन चछा } उसक्रा क्रमबद्ध इतिहास लिखना अत्यन्त कठिन कार्य है। फिर भी मैंने पाठकों को थोड़े में उसकी गति-विधि का परिचय कराने की सस्‍्क चेष्टा की है । वि केरल के सुप्रसिद्ध हिन्दी-सेवी तथा केरल विश्वविद्यालय के शोध-विभाग ( हिन्दी ) के अध्यक्ष श्री ए० चन्द्रहासन्‌ ने इस ग्रन्थ का प्राक्थन लिखने की कृपा की है। तदथे मै उनका बडा कृत हू |




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