भारत में बौद्ध धर्म का इतिहास | History Of Buddhism In India

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History Of Buddhism In India by Sundar lal sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू. था पर भी प्रकाश पड़ेगा । तारानाथ की पुस्तक में सिद्धों द्वारा सिद्धियों का प्रदर्शन किये जाने के जो उल्लेख यत्र-तत्र मिल हूँ उन्हों इद््जान की संता देना उचित नहीं हूँ । हम उन्हें ऋद्धि या श्राध्यात्मिक दाक्ति-प्रदरशन कह सफर है । यदि हम चमत्कासपूर्ग वातों से श्रोत-प्रोत तारानाथ-झुत प्रस्तुत इतिहास की प्रामाशिकता को नहीं मानते तो रामायण श्रौर गीता जैसे हिव्दुम्रों के प्ित्रतम प्रंथों का भी विश्वास नहीं किया जा सकता । तारानाथ साधारगतया परिचम पर्व श्ौर मध्य भाग के महततदूर्ग राज्यों और शासकों के संक्षिप्त वर्गन से झ्ारम्भ करते है श्र तब उन नुपों के ज्ञासतकाल में वौद्धघम की सेवा में सम्पादित सत्कार्यों श्र प्रसिद्ध वौद्ध आवार्यों का विस्पुत वर्गन प्रस्तुत करत हूँ जिन्होंने वौद्ध दयासकों का राजाश्रय पाकर वौद्धबर्म का प्रचार एवं विकास किया था । विदेषतया तारानाथ ने सदा उन राजायों का ही वर्गन करने में अभिरुचि दिखायी हूँ जिनके दासतकाल में वौद्धवर्म को यथेप्ट राजाथय मिला था । भारत में विभिन्न कालों में प्राद्भूतति वौद्ध ब्राचार्यों सिद्धों सिद्धातों शोर घामिक संस्थाग्रों का विस्तृत वर्गन करना उनका उद्देश्य था । इस प्रकार उन्होंने बहुत बड़े परिमाग में परम्परागत भारतीय वौद्धवर्म सम्बन्धी कयानकों इतिहासों श्रौर राजनैतिक इतिहासों को सुरक्षित रखा है । श्रतएव यह पुस्तक भारतीय वौद्धधमं के इतिहासों में एक. गुरुत्वपूर्ण स्थान रखरी हू । तारानाथ ने भ्रपनी पुस्तक में अधिकतर ऐतिहासिक तथ्यों को क्षेमेन्द्र श्र भटगटी के इन्द्रदत्त से उद्धृत किया है । इनकी पुस्तक में वणित कतिपय झ्रावार्यों के नामों का रूप बदल दिया गया है जंसे कृप्गचारिन के स्थान पर बाद के तिव्वती लेखकों ने कालाचायं रखा है श्र विश्वुरेव की. जगह विख्यातनदेव थोब-यिग +0ण. उहा 0. 244 । सुरे्रवोधि के स्थान पर देवेव्दवुद्धि अधिक उपयुक्त माना गया मौर वुद्धदिश के स्थान पर वुद्धपक्ष ।. तारानाथ के इतिहास में झ्रौर भी ग्रनेक एस रूप हैं जैसे विक्रमशिला के स्थान पर विक्रमशीन ग्रौर कहीं-कहीं विक्रमलणील । तिव्वती में भी ठीक विक्रमशीत का रूपानतर कर नंम-्गूनोन- छुत लिखा गया है । भारतीय इति- हासों से ठुननात्मक भ्रध्ययन करने से पता लगता हैँ कि तारानाथ की पुस्तक में राजातों 1&र स्थानों के वर्गन में यत्र-तत्र कुछ गलत ए तिहासिक सूचनायें मिलती हैं । लेकिन जहाँ तक भारतीय बौद्ध ्राचार्यों का सम्बन्ध है ऐ सा विस्तृत झ्रौर विशद्‌ वर्गन कदाचित ही किसी भी भारतीय इतिहास में उपलब्ध हो ।. अतः यह पुस्तक उन म्रभावों की सम्पूर्त करने में सशक्त रहेंगी । मैने इस पुस्तक में प्रयुक्त पारिभापिक दाब्दों को व्याख्या सहित पादटिप्पणी में दे दिया हूं और दाब्दातुकमणिका में भारतीय नामों और थब्दों को तिब्बती के साथ दिया है ।




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