जातिगत विभिन्नताओं का महत्त्व | Jatigat Bibhinatao Ka Mhattw

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Jatigat Bibhinatao Ka Mhattw by जी. एम. मोरांट - G. M. Morant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर जातियो मे भेद के विषय पर व्यापक सामान्यन करते समय इस बात को भूल जाना बहुत सम्भव है । जब तक उन विशेषताओो को निर्धारित नही किया जायेगा, जिनका उल्लेख ऐसे में आता है तब तक ऐसे निष्कर्ष निरर्थक होगे । अब तक हमने विशेषता' शब्द का प्रयौग किया है «क्योकि ऐसा लगता है कि साधारण बोल-चाल मे प्रयुक्त होनेवाले इसी शब्द से इच्छित अर्थ का सर्वोत्तम बोध होता है। लेकिनि वैज्ञानिक साहित्य में श्रब इसी उद्देश्य के लिए लक्षण' शब्द के प्रयोग की परम्परा है। इस अर्थ में लक्षण का आशय उस विशेषता या गुण से है जो सभी मनुष्यों मे हो और इस चर्चा की रुचि केवल उन लक्षणों मे है जो परिवर्तनीय होते है ताकि उनके भिन्न' प्रक्रमो से भिन्न-भिन्न जातियों का अन्तर प्रकट हो सके । बालो का रग एक लक्षण है जिसके भिन्न-भिन्न प्रक्रम हमे भिन्न-भिन्न व्यक्तियों मे मिलते है। कद एक शारीरिक लक्षण है और इसके भिन्न-भिन्न प्रक्रम लम्बाई के विस्तार के मापो से दर्शाये जा सकते है । लक्षण विभिन्न प्रकार के होते है लेकिन उनके दो वर्गो मे स्थूल सा भ्रन्तर किया जा सकता है। प्रथम वर्ग के लक्षण भिन्न-भिन्न लोगो में विभिन्नता की मात्रा को प्रकट करते है और सब स्थितियों में नही तो अधिकाश में इस मात्रा को किसी-न-किसी प्रकार अनुमाप द्वारा नापना सम्भव हो सकता है। यदि इस प्रकार मापना सम्भव हो, ऐसे लक्षण को मात्रात्मक कहा जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे लक्षण सतत विभिन्नता प्रकट करते है, परन्तु मात्रात्मक लक्षण सन्ना उन लक्षणो के लिए भी प्रयोग की जा सकती है जो प्रक्रमात्मक अतर जैसे चमं अथवा बालो का रण प्रकट करते हो जिसे किसी साधारण अनुभव द्वारा नही मापा जा सकता। दूसरे वर्गवाला कोई लक्षण विशेष एक जाति समुदाय को एक या दो विभिन्न वर्गों में विभाजित करता है (जैसे रक्त समूह की पद्धति करती है) । अत यह लक्षण भ्रसतत विभिन्नता प्रकट करते है। इसके श्रन्तर्गत वह लक्षण आता है जिसके लिए कहा जा सके कि यह अमुक व्यक्ति में है और अमुक में नही। लक्षणो का वर्गीकरण एक जटिल काम है। परन्तु मानव जातियो की जैविक तुलना के किसी भी सक्षिप्त विवरण में इन जटिलताओं में से कुछ का उल्लेख करना ही होगा। एक कठिनाई सामान्य और असामान्य कही जाने- वाली विभिन्नता मे भेद करने के सम्बन्ध मे है। अधिकाश लोगो के चारित्रिक लक्षण यह तथ्य निद्चित करते है जो उस ढग से सक्रिय रहते है जिसे सामान्य कह७्जाता है, क्योकि वही प्रामाणिक ढग होता है। परन्तु थोडे से लोग असाधारण परिस्थितियों द्वारा प्रभावित हो सकते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि कोई लक्षण असामान्य होता है। ऐसे लोग प्रायः झट पहचान लिये जाते है क्योकि यह्‌ लोग अपनी जाति की साधारण सीमाओं से बाहर जा पढ़ते हैं । १६




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