हिन्दी बहीखाता | Hindi Bahikhata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.48 MB
कुल पष्ठ :
466
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू. हैं.
चेगवती धाराओं के सामने घाचीन शैली से चाँघे हुए च्यापार-गढ़
का टिकाव होना असम्भव है । कहने का तात्पर्य यह है किं,
हम अपनी व्यापार-पद्धति सें ज़माने के आधिष्कारों का पूर्ण छाम
उठावें । समय-विभाय, परिश्रम-विभाग, औद्योगिक क्षमता आदि
अर्थ-शास्त्रीय सिद्धान्तों का उनसें -लाभदायी अनुकरणं एवं अनुशी-
छन करें, तथा यह वात सदा स्मरण रक्खें कि, हमारे पाय्यात्य
'साइयों ने इन्हीं आधिप्कारों तथा सिद्धान्तों का समादर कंरते
हुए, न कि हमारी तरह से अनादर करते हुए, समस्त संसार का
व्यापार आज अपनी सुट्टी में ले रक्खा है । जिन देश-हितैपियों
ने सम्पच्ति-शाख्र का कुछ भी अध्ययन किया है, वे इस चात को
जानते हैं कि, आर्लापन जैसी तुच्छ वस्तु बनाने के लिये इडरलैण्ड
देश में सोलहचीं शताब्दी में ही परिश्रस को लगभग अढठारह हिस्सों
.. में वाँदा करते थ्रे । आधुनिक समय में इससे थी सूक्ष्मतर परि-
श्रम एवं समय-विसाग उन देशों में भोद्योगिक सफलता प्राप्त करने
' के लिये किया जाता होगा, यह वात इससे सहज ही हसारी
' समन सें था सकती है ।
जिस प्रकार श्रम-विभाग से व्यवसायों में हमारे पाथ्यात्य
शाइयों ने छाथ उठाया है, उस ही प्रकार व्यापार में भी वे लाथ
उठा चुके हैं, उठाते हैं और उठाते रहेंगे । क्योंकि ने इस वात
को भलीर्साति समभ चुके हैं कि, एक मनुप्य के ज़िस्मे एक काम
कर देने से वह उसमें वड़ा [दक्ष हो जाता है | उसकी नस-नस
से चाकिफ हो जाने के कारण ऐसी कोई कठिनाई फिर दोप नहीं
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