उपदेश साहस्त्री | Upadesh Sahastri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हक
ट उपदशसाहखी [ उपोद्धात
तदुक्तं सुरेर चाय. निलयेषु शुद्धिप्र था याद्धोगोऽप्यप्रतिब धक.
भोग भङ्करमीक्षयन्ते बुद्धिरदधिस्ठ रोचत इति काम्याभिचारादि
कमविधान तु पुरुषवशीकरणेन खाभाविकप्रवृ्तिनिवारणार्थमिदयेषा
दिक् तथाच चित्तशुद्धेः प्रथम पेक्षितात्तदर्थं॑कमेविधानं प्रथमं
प्रवर्षे पश्च ज्ञानोपदेरा इति कर्मज्ञानका उयोर्थद्रारा देहेषु
मद्भावेन पौवोपयसंव ध उक्तः ज्ञानका उस साक्ष त्फकाथविपय
प्वाकर्मभिरनपेक्षिता्थत्वाच्चागतार्थवमन थशेषघ्वं च तस सिद्ध
मिति २
ननु कमीणि कृतानि कैः फर्प्रदानि कोके न्ष्टानि यथा
पित्रादिभिरुपदिष्टविपयाणीष्टफरू नि तेर्निषिद्धविपयान्यनिष्टफलानि,
तदुदासविषयाणि दैवाधीनतयोमयार्थानि तथा वेदविहितनि
कमौणीष्टफखानि निषिद्धा यनिष्टफर नि विहितप्रतिपिद्धन्यामिश्र
कर्माणोानिष्टन्यामिश्रफकानि मवन्ति तथाच शाखं अनिष्टमिष्टं
मिश्र च त्रिविधं कणः फल मिति एर्वच कर्मणां फटान्यभिचा
रा मोक्ष च फलविशेषजात्कर्मविशेषसाध्यत्वोपपत्तेन विद्या कृष्य-
मस्तीति न तदथ नि ज्ञानका डानि मुमुक्षुणा विचारणीयानि किंतु
कम येव कानिचिचातुम्मोस्थादी यक्षय्यफल थो यनुषठेयानीति कम
जडानां प्रत्यवस्थानमित्याशडइयाह
कमोणि देहयोगाथे देहयोगे प्रियात्रिये
ध्रुवे खाता ततो रागो देपधैव तत क्रिय ३
मणीति द्वाभ्याम् कममैफठं हि जाल्यायर्मोगरक्षणं तच
देहसव धंविना नोपपद्यत इति कमौणि देहयोगारथमेवेत्य्थः दे
योगे च संसारो दुवोर इत्याह देहयोग इति देहसंब धे सति
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