तर्जुमा कुरान शरीफ | Tarzuma Quran Sharif

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हूँ दैन 3 खूरतें मक्का में नाजिल (श्रवतरित) हुई वह मक्की त्रौर जो मदीना में अवतरित हुई' वढ मदनी कहलाती हैं | सूरतों का विभाग किसी विशेष प्रसंग श्यवा विषय को ले घर नहीं दै | प्राय: 'श्रनेक विषय श्रोर कथानक मिले-जुले से स्थल-स्थल पर वर्णित हैं । एकट्ी चर्चा बार बार भी श्ाई दे । पायतों की भाषा अरबों दे, इसलिये कि इस शान का शवतरण उस समय अरब निवासितों के उद्धार के लिये ही हुआ था ।” भाषा गय होते हुये भी अनुप्रातों की भरमार से अत्यन्त ललित श्र श्राक्षेक दै । उदाहरण के लिये देखिये--'व्वन्नाज़िश्याति गरकन्‌ (१)+व्यननाशिताति नश्तन्‌ (२)--व्वस्साबिद्वातिसब्दन्‌ (३)--फ़र्ताबिकाति सब्कनू (४) ने फल मुदब्बिराति अमर (५) ।” इेश्वरीय ज्ञान महात्मा मुहम्मद के दृदय में समय-समय पर जब उदय होता तो इसी को “श्रायत” श्थवा “वही? का उतरना कहते हैं | कुरान के श्रनुसार एक ईश्वर ही सुष्ट की उत्पत्ति, पालन श्रोर संदार करने वाला है। सर्वत्र निराकार स्वरूप का प्रतिपादन है। कहीं कहीं साकार जेंसा भी वर्णन प्राप्त हे नेसे “इश्वर सृष्टि रचना करने के उपरांत श्रश पर जा बिराजा” “पफरिश्ते श्रश को उठाये हैं” श्रादि । परन्तु बस्तुत: बारबार यही शिक्षा आई है जिससे प्रभावित होकर, मनुष्य किसी प्रकार की भी साकार उपासना न करके ईश्वर विसुख होने के कुफ से बचा रदे | न्इस्हाम” के श्थ यह नददीं कि केवल १४०० वर्ष पूर्व हज़रत मुहम्मद द्वारा कोई नवीन मत श्रयवा घर्म की स्थापना हुई थी | श्गदि से चले शा रहे मानव घर्म, सत्तार के विभिन्न देश श्रौर काल में श्रवतरित धर्मप्रन्थ और श्राप्त पुरुषों द्वारा प्रदर्शित, बहुत समय पूर्व हजरत इन्राहीम झौर सर्वोपरि मूलपुरुष हज़रत श्ादम का मान्य श्रौर मगवदूप्राप्ति का एक मात्र मार्ग हो 'इस्लाम-घर्म है, भले ही वह ऊिसी नाम से पुकारा जाय। कुरान का कथन है कि पहले एक ही जति श्रौर धर्म था । बाद में लोगों के भटकने पर समय-समय पर महापुरुष श्रौर धर्मग्रंय पथ प्रदर्शन के लिये श्राते रहे, श्ौर पुन: इन्हीं के अनुयायी आआन्तिवश श्रपने श्पने को पयक-




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