रूपाजीवा | Roopajeeva
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० रूपाजीवा
गया हों ।
न्द्ह जव अपने घर के चौराहे पर श्राया, ओरं लडते हुए ऊुत्तो के
कुण्ड फे साथ चौधरी छेदामलू अपनी गली की ओर सुडा, चेतराम फी
कल्पना और सजीव हो आई--“जब में साठ वर्ष का होऊँगा, मेरा
लटला जवानु हो जायगा । 'फरम! सँसालेगा, मे धर्म करूँगा, वह
व्यापार को विमना कर लेगा ।!
सीर्चते-सोचते जवश्वह अपने घर के ऑगन में गया, उसने देग्या,
उसकी दोनो बच्चियाँ--सीता और गोरी--दादी के सग॒ताज्ञ परॉर्ों
का नाश्ता कर रही थी । ,
चेततराम ने दोना बच्चियों को प्रसाद दहिया) उनके माथे पर
हनुमान का तिलक लगाने लगा-डउसी बीच दादी ने रहस्य-भरे
शब्दों में कहा, “सुना ! “कमरे में मुह फुलाये वैदी है, न बाहर
न भौतर न धोना न नहाना। में कहे दे रहे है, जे ऐव बच्चे पे
जायगी, ह!
चेतरास कमरे में गया । रूपाबहू उदास फश पर बेदी थो-बेहदं
गम्भीर और क्षान्त । चेतरास उसे बुलाता रहा, पर बह बोली नही।
, भगवान् का गअ्साद तक न स्वीकार किया ।
बच्चे के माथे पर तिलक लगाकर হাল কানন के सामने आ
“म्लन-कआा । समवेद-स्वर से बोला, “जब तुम कुछ बताओगी नही वो
में क्या करूँ ! कुछ बोलोगी भी ? - और ऐसी भी क्या बात, जो
तुम्हे ऐसा बनाएु | जो भी तुम्हारी शिकायत हो, हुःख-दर्द हो, मुझसे
कहो, मे न पूरा करूँ तो कसूरचार ।”
चेतरास चुप हो गया । घूमकर फिर सोते हुए बच्चे की ओर
देखा और उसके ऊपर झुक गया। उसके फूल जेसे नन्हे शरीर पर
धीरे-धीरे हाथ फेरता रहा श्रौर उसके माथे की चोट देख झुस्कराता
रहा । एकाएक उसे ध्यान आया कि अभी तक बच्चे के माथे पर तेल
नहीं रखा गया । बढ़कर हथेली में तेल लिया ओर बड़े स्नेह से उसके
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