रूपाजीवा | Roopajeeva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० रूपाजीवा गया हों । न्द्ह जव अपने घर के चौराहे पर श्राया, ओरं लडते हुए ऊुत्तो के कुण्ड फे साथ चौधरी छेदामलू अपनी गली की ओर सुडा, चेतराम फी कल्पना और सजीव हो आई--“जब में साठ वर्ष का होऊँगा, मेरा लटला जवानु हो जायगा । 'फरम! सँसालेगा, मे धर्म करूँगा, वह व्यापार को विमना कर लेगा ।! सीर्चते-सोचते जवश्वह अपने घर के ऑगन में गया, उसने देग्या, उसकी दोनो बच्चियाँ--सीता और गोरी--दादी के सग॒ताज्ञ परॉर्ों का नाश्ता कर रही थी । , चेततराम ने दोना बच्चियों को प्रसाद दहिया) उनके माथे पर हनुमान का तिलक लगाने लगा-डउसी बीच दादी ने रहस्य-भरे शब्दों में कहा, “सुना ! “कमरे में मुह फुलाये वैदी है, न बाहर न भौतर न धोना न नहाना। में कहे दे रहे है, जे ऐव बच्चे पे जायगी, ह! चेतरास कमरे में गया । रूपाबहू उदास फश पर बेदी थो-बेहदं गम्भीर और क्षान्त । चेतरास उसे बुलाता रहा, पर बह बोली नही। , भगवान्‌ का गअ्साद तक न स्वीकार किया । बच्चे के माथे पर तिलक लगाकर হাল কানন के सामने आ “म्लन-कआा । समवेद-स्वर से बोला, “जब तुम कुछ बताओगी नही वो में क्या करूँ ! कुछ बोलोगी भी ? - और ऐसी भी क्‍या बात, जो तुम्हे ऐसा बनाएु | जो भी तुम्हारी शिकायत हो, हुःख-दर्द हो, मुझसे कहो, मे न पूरा करूँ तो कसूरचार ।” चेतरास चुप हो गया । घूमकर फिर सोते हुए बच्चे की ओर देखा और उसके ऊपर झुक गया। उसके फूल जेसे नन्हे शरीर पर धीरे-धीरे हाथ फेरता रहा श्रौर उसके माथे की चोट देख झुस्कराता रहा । एकाएक उसे ध्यान आया कि अभी तक बच्चे के माथे पर तेल नहीं रखा गया । बढ़कर हथेली में तेल लिया ओर बड़े स्नेह से उसके




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