सुप्रभात | Suprabhat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अमरीकन रमणी
अपमान करने ! नहीं मेरीन ! तुम भूलती हो! संसार में कोई बुरा से बुरा शब्द ऐसा
नहीं, जो ठुम्हारे अपमान के लिए कहा जा सकता हो | तुमने मेरे साथ धोखा नहीं
किया, कत्त व्य, प्रे भ, मनुष्यत्व, देश-प्र म॒ और घछी-जाति क खील के खथ धोखा शियः
है। मेरे हृदय में अमरोका का गौरव बेठा हुआ था, तुमने उसे अशुद्ध अक्षर के समान
छीर दिया है । मेरे हृदय में स्रो-जाति के लिए सम्मान था, तुमने उसे मिटा दिया
है। में सम्रकता था, स्री कुछ नहीं चाहती, केवल प्रेम चाहतो है । तुमने अपने
उदाहरण से सिद्ध कर दिया है, कि श्री सब कुछ चाहती है, केवल प्रेम दी नहीं
चाहती । उसके हाथ मं यह साधन है, जिससे वह पुरुषो को म॒खं बनाती है भौर
इसके बाद उन्हें भूछ जाती है । यह विचार, और नहीं तो तुमने अमरीकन ख्रियों के
संबन्ध में तो सच्चा सिद्ध कर दिया है। भारतबप के लिए तुम्हारा सन्देशा अमरीकर `
मान-प्रतिष्ठा को लोगों की दृष्टि में बहुत घटा देगा ।
मुक्त पर इनमे से किसी बात का अपर न हुआ । परन्तु अन्तिम शब्दों पर জা
से पानी-पानी हेः गई । अमरीकन घी सव कुर सह सकती है, मगर यह नदी सद्
सकती कि बढ़ देशधातक है ; उसने देश की प्रतिष्ठा को नौचे गिरा दिया है । इन
शब्दों से मेरे कलेजे पर छरियाँ चछ गई । मुककों उस समय इतवा क्रोध था कि.
अगर हाथ में पिस्तोल होती तो मदनलाल को वहीं ढेर कर देती। मदनलाल ने जब
यह शब्द कहे तो उनके चेहरे पर क्रोध न था, परन्तु में यह शब्द सुनकर पागल हो
गई और चिल्लाकर बोलौ--'मेरे मकान से निकल जाओ ।
मदवलाल ने आइचये से मेरी ओर देखा | कदाचित् उनझो यद्ट ख्याल न था कि-
मनुष्य इतना नौच भी दो सकता है । उस समय मेरे शरीर पर उन्हीं के रुपये से
खरीदे हुए आभूषण थे । यदि वे चादते तो उच्की ओर इशारा करके मेरा सिर झुका
सझते थे। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और चुपचाप मेरे मझान से निकल गये ।
आठउन्दस महीने बीत गये ¦ मे मदनलाल को मृल गड । मुझे इतना भी स्मरण
नहों रद्दा कि मने उनको कोई चोट परहुवाई है । मेरे भारतीय पाठ आद्चये न करें,
अमरोकन चत्री कौ प्रकृति हौ ऐसी है । वे पुरुषों का मच तोढ़ती हैं और सरल जाती
हैँ! एक दिन बाज़ार में भीड़ देखकर में ठहर गई । वहाँ एक योगी बेठा था। उसके:
नग्न ५ ९-
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