तूणीर | Tooneer

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Tooneer by मंगलामोहन - Mangalamohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना हिन्दी का वतमान साहित्य बड़े वेग से उन्नति कर रहद्दा है ! कविता का विभाग तो शायद अन्य सभी क्षेत्रों से अधिक फल्न- फूल रहा है | आज से कुछ महीने पदल्ते मेंने कविताओं का वर्गी- करण किया था । देखा, हिन्दी की वर्तमान कविता में कुछ उदासी, कुछ विरह कुछ अवसाद और कुछ थकान का-सा भाव आता जा रहा है। अभी कत्न तक जो साहित्य स्वकीया ओर परकीयाओं के कल-कल्लोजलों से सुखरित हो रहा था उसमें अचानक इस प्रकार की उदासी आ जाना कुछ विचित्र रूर है, पर भाश्चय- जनक नहीं । आज़ का युवक-कवि क्रेवज्ञ अजभाषा या संस्कृत कवियों के पुराने संस्कारों से ही प्रभावित नहीं है ; उसके सामने सारे संसार का साहित्य है, वह अचानक एक नये प्रकाश में आ उपस्थित हुआ है, जो आकषक भी है औौर उत्तेजक भी | युवक में-का कवि-पुरुष इसकी उपलब्धि करना चाहता है, पर उपलब्धि को प्रकट करने के लिए उसे भाषा की भवश्यकता है। पुरानी भाषा, फिर चाहे वह खड़ी बोली द्वो या ब्रजभाषा, इसके किए उपयुक्त वाहन नदी है। उसे भाषा की रचना करनी पढ़ी है।




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