तार सप्तक कवियों के काव्य सिद्धान्त और उनकी कविता | Tar Saptak Kaviyon Ke Kavya Siddhant Aur Unki Kavita
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अखिलेश कुमार मिश्र - Akhilesh Kumar Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथव! समाप्ति पर आया, छायावाद के वे ही कवि जो धूप मे निकलने से परहेज
करते थे, खेतो, खलिहानो ओर कारखानो के आस-पास घूमने लगे | इसलिए यह भी
कहा जा सकता है कि छायावादोत्तर काल कोई सर्वथा नवीन क्षितिज लेकर नहीं
आया था । वह छायावादी प्रयोगो के परिपाक से उत्पन्न हुआ । यहा दिनकर आशिक
रूप से ही सही है। क्योकि निराला छायावाद के आरम्भ से ही दिवा के तमतमाते रूप
को देख रहे थ| यहाँ कुछ पक्तियो को देख लना होगा --
चढ रही थी श्प,
गर्मियों के दिन
दिवाका तमतमाता रूप,
उठी झुलसाती हुई लू ,
रूई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगी छा गयी,
प्राय हुई दोपहर
-- वह तोडती पत्थर
छायायाद के साथ ही हिन्दी कविता मे एक नये यथार्थ का जन्म हो रहा था।
जिसे छायावादी कल्पनाशालता मजूर नर्ही थी | यह यथार्थ भारतेन्दु युग से ही अपनी
अभिव्यक्ति के अवसर तलाशता कभी मौन तो कभी मुखर होता चला आ रहा था।
छायावाद मे वह निराला के यहो मुखरित हो रहा था। एसे ही समय में सन् १६३६
मे प्रगतिशील लेखक सघ की स्थापना हुई} काग्रेस की राजनीति मे किसान सभा
अस्तित्व मे आयी । सारांश यह कि जीवन के नये यथार्थं की अभिव्यक्ति के सारे
सामान एकत्र हो चुकं थे। अप्रेल १६३६ मे प्रगति शील लेखक सघ के स्थापना
प्र
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