जैनसिद्धान्तदर्पण | Jainsiddhantdarpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५७ न्नं रिकं सकता था ] आपको अपनी इस शक्तिका उचित अभिमान था) कभी कभी आप कहा करते थे । कि मैं अपुक अपुक महामहो- -पाध्यायोंको भी. बहुत .जल्दी पराजित कर सकता हँ परन्तु क्या 'करूँ, उनके सामने घण्टोतक धाराप्रवाह संस्कृत बोढनेकी शक्ति मुझमें नहीं है। पण्डितजी संस्कृतमें बातचीत कर सकते थे और अपने छात्रोंके साथ तो वें चण्टों बोढा करते थे, परन्तु फिर भी उनका व्याक- रण इतना पक्का नहीं था, कि वे उसकी सहायतासे शुद्ध संरकृरतके प्रयोग औरोंके सामने निर्मय होकर करते रहें ! लेखनकोशल । पण्डितोको छिखनेका अम्यास नहीं रहता है, पर पण्डितजी इस विषयमे अपवाई्‌ थे । उनमें अच्छी लेखनशाक्ति थी । ययापि अन्यान्य कामोभे फंसे रहनेके कारण उनकी इस राक्तेका विकास नहीं हुमा और उन्होंनें प्रयत्न भी बहुत कम किया; फिर भी हम उन्हें जेनसमा- जके अच्छे छेखक कह सकते हैं । उनके बनाये हुए तीन ग्रन्थ हैं, जनकिद्धान्तदर्षण, सुसीलाउपन्यास ओर जैनसिद्धान्तपरवेशिका जेनसिद्धान्तदपणका केवल एक ही भाग है । यदि इसके अगिके.मी भाग रिचि, गये होति, तो जैनसादहित्यमे यह एक बड़े कामकी चीज होती | यह पहला भाग मी बहुत अच्छा है, प्रवेशिका .जैनधर्मके विद्यार्थियोंक लिए एक छोटेसे पारिमाषिक कोशका काम देती है। इसका बहुत प्रचार है । झुशीलाउपन्यास उस समय लिखा गया था, जब हिन्दीमें अच्छे उपन्यासोंका एक तरहसे अभाव.था और आश्वर्यजनक घटनाओंके विना उपन्यास उपन्यास ही न समञ्च जाता था | उस समयकी हृष्ठिसे इसकी रचना अच्छे उपन्यासोंमें की जा सकती है | इसके भीतर जैनधर्मके कुछ गंभीर विषय डाल दिये गये हैं, जो एक उपन्यासमें नहीं चाहिए थे, फिर भी. वे बढ़े महत्त्के हैं । इन तीन पुर्त- कोंके सिवाय पण्डितर्जाने सार्वधर्म, जैनजागरफी आंदि कई छोटे छोटे 'ड्रेक्ट भी लिखे थे ।




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