शिशु हित शिक्षा : खंड 2 | Shishu Hit Shiksha : Volume-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ दोहा ॥ त ५ दया दया सहो कहे, ते दया धर्म छे ठीक । दया उलन पाली, त्यांने मुगत नजीक ॥ १॥ दया तो पहिलो वरत छ, साध शवक करो धषै। पमि रुके ज्यां सु आवतां, नवा न लागे कमे॥२॥ छकाय हणे हणांव नहीं, हणतांभलान जाण ताय। मन वचने काया क्री) ए दया कटी जिशुराय ॥ ३॥ दया चोखे चित पलियां, निरे घोर दर संसार | दीन दया प्ररुपतां, भले जीर उतरे पाय॥४॥ पिण एक नाम दया लोकी करो, तिशरा भेद नेक । ক সত त्यां में भेपधारी भूला घणा, सुणनों आण विवेक ॥ ५ ॥ জপ भयः ढाल चोथी ¦ दरवेलाय लागी भावे लाय लागी, दरच छे कठाने भावे दरवो । ए भेद न जाणे मूल मिथ्याती, संसार ने झुगतरो मारग जूयों । भेष धरने भूलांरो निरणो कीजो ॥ १ ॥ कोई दरवेलाय बलताने राखे, दरवे कूचे पडताने काक्न वचाये। । एतो उपकार क्रियो इण भवरो, विवेक परिकल स्याने खचर न कायो ॥ भे ० ॥ २॥ घट में ज्ञान घालिने पाप पचखावे, দিত परतो राप्यो অনন্থুনা मायो । भावे लायसु बलताने काठढे रिखेसर, तेपिण गहिलां भेद ने पाये ॥ भे० ॥ ३॥ झले चित्त खतर वांचे मिथ्याती, दरवन




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