शिशु हित शिक्षा : खंड 2 | Shishu Hit Shiksha : Volume-2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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No Information available about धन सुखदास हीरालाल आंचलिया - Dhan Sukhdas Heeralal Aanchalia
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ दोहा ॥
त ५
दया दया सहो कहे, ते दया धर्म छे ठीक ।
दया उलन पाली, त्यांने मुगत नजीक ॥ १॥
दया तो पहिलो वरत छ, साध शवक करो धषै।
पमि रुके ज्यां सु आवतां, नवा न लागे कमे॥२॥
छकाय हणे हणांव नहीं, हणतांभलान जाण ताय।
मन वचने काया क्री) ए दया कटी जिशुराय ॥ ३॥
दया चोखे चित पलियां, निरे घोर दर संसार |
दीन दया प्ररुपतां, भले जीर उतरे पाय॥४॥
पिण एक नाम दया लोकी करो, तिशरा भेद नेक ।
ক সত
त्यां में भेपधारी भूला घणा, सुणनों आण विवेक ॥ ५ ॥
জপ भयः
ढाल चोथी ¦
दरवेलाय लागी भावे लाय लागी, दरच छे कठाने भावे
दरवो । ए भेद न जाणे मूल मिथ्याती, संसार ने झुगतरो मारग
जूयों । भेष धरने भूलांरो निरणो कीजो ॥ १ ॥ कोई दरवेलाय
बलताने राखे, दरवे कूचे पडताने काक्न वचाये। । एतो उपकार
क्रियो इण भवरो, विवेक परिकल स्याने खचर न कायो ॥ भे ० ॥ २॥
घट में ज्ञान घालिने पाप पचखावे, দিত परतो राप्यो অনন্থুনা
मायो । भावे लायसु बलताने काठढे रिखेसर, तेपिण गहिलां भेद
ने पाये ॥ भे० ॥ ३॥ झले चित्त खतर वांचे मिथ्याती, दरवन
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