श्री उत्तरायनसूत्रसार : खंड 1 | Shreeuttaradhyayan Sutrasar Volume - I
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जक =
( १९१९)
बता कर कहते हैं कि संसार जो दुःखो का समुद्र है उस में
कोई महापुर्य के उदय से उत्तम' सामग्री प्राप्त हुई है तो
उसका सदुपयोग कर संसार के दुःखो से मुक्त हो जाओ
उस अध्ययन की १ ली गाथा ।
. चत्तारिपरमंगाणरि दु्लहाणीहं जंतुणो, ।
माणु सत्त ই জা জম লিখ वींरिय॑ ॥ `
(१) मसुष्य जन्म (२) सद्गुरु का बोध का श्रवणं
[| छनना ] ५३ ) उस के वचन पर विश्वांस ओर (४ )
संयम में अपनी शक्ति उपयोग में लेनीं वे चार वस्तुयें
जीवों को वहुत कठिनता से माप्त होती हैं।
पशुत्व में जो दुःख और परवशत्ता है वह सव जानते
हैं दुए मनुष्यों को जो फैद में दुःख है बह भी सव देखते
हैं ओर सत्ताधारिओं में जो रात दिन इंधर उधर घृमनां
और ऐश आरामी हैं लड़ाइयों का संकट है वह भी पत्यत्त
हरसे दी ज्ञानी भम ने नकं और खर्ग जो दुःख घु के
स्थान हैं वहां विनां शांति धमे भरवण करने का बहुत दु-.
लम वाया है केवल एक मनुष्य जम्भ में ही ऊंच गोत्र में
जन्भ लेने वाले को नीति से द्रव्योपाजेन करने बाले को
महा एय के उदय से परमाथ इतति की सद्बुद्धि 'होती है
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