निरयावलिका | Nirayavalika

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Nirayavalika  by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastriश्रीचन्द सुराना 'सरस' - Srichand Surana Saras"

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श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्रट्ठकथा के अभिमतानुसार ये नरकों के नाम नहीं हैं श्रपितु नरक में रहने की भ्रवधि के नाम हैं । मज्मिमनिकायएं “आदि में नरकों के पाँच नाम मिलते हैं । जातक अदृठकथा,*“'सुत्तनिपात अद्ठकथाआदि में नरक के लोहकुम्भीनिरय आदि नाम मिलते हैं। वैदिक परम्परा में नरक निरूपण वैदिक परम्परा के आधारभूत ग्रन्थ ऋग्वेद आदि में नरक आदि का उल्लेख नहीं हुआ है । किन्तु उपनिषद्साहित्य में नरक का वर्णन है। वहाँ उल्लेख है--नरक में अ्न्धकार का साम्राज्य है, वहाँ आनन्द नामक कोई वस्तु नहीं है। जो अ्रविद्या के उपासक हैं, श्रात्मघाती हैं, बूढ़ी गाय आदि का दान देते हैं, वे नरक में जाकर पैदा होते हैं। श्रपने पिता को वृद्ध गायों का दान देते हुए देखकर बालक नचिकेता के मन मे इसलिये संक्लेश पैदा हुआ था कि कहीं पिता को नरक न मिले । इसीलिये उसने अपने श्राप को दान में देने की बात कही थी ।४ 3 पर उपनिषदो में, नरक कहाँ है ? इस सम्बन्ध में कोई वर्णन नहीं है। और न यह वर्णन है कि उस अन्धकार लोक से जीव निकल कर पुनः अन्य लोक में जाते हैं या नहीं । योगदर्शन व्यासभाष्य ९ में १. महाकाल २. श्रम्बरीष ३. रौरव ४. महारौरव ५. कालसूत्र ६. अन्धतासिस्र ७. श्रवीचि, इन सात नरकों के नाम निर्दिष्ट हैं। वहाँ पर जीवों को भ्रपने कृत कर्मो के कदु फल प्राप्त होते है । नारकीय जीवों की श्रायु भी अत्यधिक लम्बी होती है। दीघं-भ्रायु भोग कर वहाँ से जीव पुनः निकलते हैं । ये नरक पाताल लोक के नीचे श्रवस्थित हैं ।*५ योगदर्शन व्यासभाष्य की टीका में इन नरकं के श्रतिरिक्त कुम्भीपाक श्रादि उप-नरकों का भी वर्णन है। वाचस्पति ने उनकी संख्या भ्रनेक लिखी है पर भाष्य वातिककार ने उनकी संख्या श्रनन्त लिखी है । श्रीमद्‌भागवत ४९ मं नरकों कौ संख्या श्रद्‌ठाईस है । उनमें इक्कीस नरकों के नाम इस प्रकार हैं--१« ताभिर २. श्रन्धतामित्त ३. रौरव ४. महारौरव ५. कुभ्भीपाक ६. कालसूत्र ७. असिपत्रवन ८. सूकरमुख ९. अन्धकूप १०. कृमिभोजन ११. संदेश १२. तप्तसूमि १३. वज्रकष्टशाल्मली १४. वेतरणी १५. पूयोद १६. प्राणरोधं १७. विशसन ३८. लालाभक्ष १९. सारमेणादन २०. म्रवीचि २१. श्रयःपान । इन इक्कीस नरकों के अतिरिक्त भी सात नरक और हैं, ऐसी मान्यता भी प्रचलित हैं। ये इस प्रकार हैं--१. क्षार-कर्दम १. रक्षोगण-भोजन ३. शूलप्रोत ४. दन्दशूक ५. अवटनिरोधन ६. पयोवत॑न ७. सूचीमुख । इस प्रकार जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा में नरकों का निरूपण है। नरक जीवों के दारुण कष्टों कौ भोगने का स्थान है। पापकृत्य करने वाली आत्माएँ नरक में उत्पन्न होती हैं । निरयावलिका में, युद्धभूमि में मृत्यु को प्राप्त कर नरक में गए श्रेणिक के दस पुत्रों का दस अध्ययनों में वर्णन है। जबकि उनके अन्य ১৪১ ফল ४०. मज्िमनिकाय, देवदूत सुत्त ४१. जातक अ्रट्ठकथा, खण्ड हे, पृ. २९; खण्ड ५ ४. २६५ ४२. सुत्तनिपात श्रट्ठकथा, खण्ड १, पृ. ५९ ४३. कठोपनिषद्‌ १. १. ३; बृहृदारण्यक ४. ४. १०-११, ईशावास्योपनिषद्‌ ३-९ ४४. योगदशंन-व्यासभाष्य, विभूतिपाद २६ ४५. गणधरवाद, प्रस्तावना, पृष्ठ १५७ ४६. श्रीमद्‌भागवत (छायानुवाद) पू. १६२ पंचमस्कंध २६, ५-२६ [ १७ |]




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