श्री अभिनन्दन स्वामी का चरित्र | shree abhinandan swami ka charitra

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Book Image :  श्री अभिनन्दन स्वामी का चरित्र  - shree abhinandan swami ka charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) दे भी नहीं, ऐसे ही उन्छेखल भी नहीं, ऐसे सम्बक प्रकार से प्रतिपाइन करके तुमने इन्द्रियों का जय किया हैं योग के जो भाठ ओग कहे हैं वे तो फक्त পর্ন मात्र हैँ. नहीं तो यह योग वालपने के आग्म्भ से तुम्दारी सात्म्मता को चर्या परप होने ? है स्वामिन ! लम्बे काछ से साथ रहने वाले विषयों में तुमको चिगग दै. श्रौर अदृष्ट ऐसे योग में सात्म्यपंणा है, यह रमक नो अलौकिकः नगता &, जैसा तुम अपकार करने वाले पर राग धरते हो ऐसे दूसर उपकार करने वाले पर भी राग प्ग्ते नह, अहो ! तुयाग सब अलोडिक 5 ! हे भथ | तमन हिसके पुरुष के उपर उपझार किया, और जो आश्रित थे, उन की उपचा की, ऐसे तुम्गार विचित्र चरित्र को कोन अनुसरे टे ममदन ? पएर्म समाधि में तुमन तुमार आत्मा को इस प्रकार में जो दिया 5 ক जिम “मे सुस्ती हूं के दुःखी हूं यासुखी फे दःखी नहीं एसा तुम्हारे ढिल में भी आता नही जिस म ध्याता, ध्यान और ध्येय यह त्रिषु एकात्मा क पाई ६, पुसं तुम्हारे योग को महात्म्य पर दूसरों को कैसे श्रद्धा होदे : + रस तरह स्तुति करके इनदर चुप हए, तव प्रथमे एक योजन तक फलती गंभीर गिरा से देशना देनी शुरु की, यर्‌ सस एक विपत्ति की জানি हैं. उसमें गिरते मरु॒प्य के पिता, माता भित्र, बन्धु या दूसरे कोई भी शरणरूप हे




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