समयसार - प्रवचन | Samaysar Pravachan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाधा-३६ [ ११
ज्ञान विफल्पसे सम्यकत्व फी क्षति नहीं :---
सम्यक्त्वमें बाधा ज्ञानके विकल्पोंसे नहीं भ्राती है। ज्ञानका विकल्प माने
चीज ज्ञानमें प्राना । चीजके ज्ञानमे श्रानेसे सम्यक्स्वको क्षति नहीं पहुंचती
है। सम्यक्त्वकी क्षति यही रहैक्रियातो सम्यक्त्व मिट जाये या संवर श्रौर
निजं राकी रानि होजाये । श्रात्मामे रागद्रेष कषायादि भी होते रहे, मगर
इनसे सम्यक्त्वकीः हानि नहीं होती है । यह् बात जरूर है कि राग-द्रेष मोह
के भ्रात्मामे परिणमनसे भ्रात्माका विकास रुक जाता है, राग्रादि आत्माके
विकासको नहीं होने देते, उसमें वाधक होते हैं:--परन्तु सम्यक्त्वको इनके होने
से कोई हानि नहीं पहुंचती है। कषाय भी सम्यक्त्वका नाश नहीं करती हैं ।
केषाय होती रहं वौर-वार होती रहै यह परम्परा सम्यक्त्वके नारका कारणं
चन सकती है, वहां भी उनसे सम्यक्त्वमे वाधा नहीं पहुंची । विपरीत श्रभिप्राय
से ही सम्यक्त्वकी क्षति हई रागादिक वाधक श्रवश्य ह । श्रात्मोत्कषेमे यहाँ
तो केवल स्वरूपकी ष्टि रखकर वणेन हौ रहा है कि राग चरित्र गुणका
.विकार है वह सम्यक्त्वका विपक्षी नहीं । केवल सम्यग्ददंन ही भ्रात्मके
उक्कपंका कारण नही है, भ्रपितु चारित्र भौ तो श्रात्माके सुविकासके उत्कर्पमें
कारण है । |
कितने हो जीव जो विपरीत अभिप्रायमें पड़े हुए हैं, वे कहते हूँ; भष्य-
वसान ही जीव है। रागद्वेप श्रादि विभावोंसे कल्ुषित परिणमन श्रष्य्थैसान
कहलाता है । रागादि परिणामोसि सम्यक्त्वका नाश नहीं होता, इनसे चारित्र
“की क्षति है । सम्यक्त्वके कारण जो संवर निर्जरा होती हैः वह रागादिके
होनेपर भी होती रहती है । सम्यवत्वके रहनेपर रागका रहना एक दोष है ।
परन्तु राग चारित्रपर श्राक्रमण फरता है, सम्यक्त्वका घात नहीं कर सकता
है । श्रात्मामें जो रागादि परिणाम पये जाते हैं, उसे भ्रध्यवसान कहते हैं,
रागादि भाव बुद्धिपूरव॑क हों, या श्रवुद्धिपूर्वक हों, समभे ्रतिहोंयानभ्राते
हो--रागादिसे कलुषित जो परिणाम है, उसे भ्रध्यवसान कहते हँ । मिथ्या-
इृष्टि जीव अध्यवसानको जीव मान बैठा है। क्रोध मान-माया-लोभ-राग-हे ष,
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