समयसार - प्रवचन | Samaysar Pravachan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाधा-३६ [ ११ ज्ञान विफल्पसे सम्यकत्व फी क्षति नहीं :--- सम्यक्त्वमें बाधा ज्ञानके विकल्पोंसे नहीं भ्राती है। ज्ञानका विकल्प माने चीज ज्ञानमें प्राना । चीजके ज्ञानमे श्रानेसे सम्यक्स्वको क्षति नहीं पहुंचती है। सम्यक्त्वकी क्षति यही रहैक्रियातो सम्यक्त्व मिट जाये या संवर श्रौर निजं राकी रानि होजाये । श्रात्मामे रागद्रेष कषायादि भी होते रहे, मगर इनसे सम्यक्त्वकीः हानि नहीं होती है । यह्‌ बात जरूर है कि राग-द्रेष मोह के भ्रात्मामे परिणमनसे भ्रात्माका विकास रुक जाता है, राग्रादि आत्माके विकासको नहीं होने देते, उसमें वाधक होते हैं:--परन्तु सम्यक्त्वको इनके होने से कोई हानि नहीं पहुंचती है। कषाय भी सम्यक्त्वका नाश नहीं करती हैं । केषाय होती रहं वौर-वार होती रहै यह परम्परा सम्यक्त्वके नारका कारणं चन सकती है, वहां भी उनसे सम्यक्त्वमे वाधा नहीं पहुंची । विपरीत श्रभिप्राय से ही सम्यक्त्वकी क्षति हई रागादिक वाधक श्रवश्य ह । श्रात्मोत्कषेमे यहाँ तो केवल स्वरूपकी ष्टि रखकर वणेन हौ रहा है कि राग चरित्र गुणका .विकार है वह सम्यक्त्वका विपक्षी नहीं । केवल सम्यग्ददंन ही भ्रात्मके उक्कपंका कारण नही है, भ्रपितु चारित्र भौ तो श्रात्माके सुविकासके उत्कर्पमें कारण है । | कितने हो जीव जो विपरीत अभिप्रायमें पड़े हुए हैं, वे कहते हूँ; भष्य- वसान ही जीव है। रागद्वेप श्रादि विभावोंसे कल्ुषित परिणमन श्रष्य्थैसान कहलाता है । रागादि परिणामोसि सम्यक्त्वका नाश नहीं होता, इनसे चारित्र “की क्षति है । सम्यक्त्वके कारण जो संवर निर्जरा होती हैः वह रागादिके होनेपर भी होती रहती है । सम्यवत्वके रहनेपर रागका रहना एक दोष है । परन्तु राग चारित्रपर श्राक्रमण फरता है, सम्यक्त्वका घात नहीं कर सकता है । श्रात्मामें जो रागादि परिणाम पये जाते हैं, उसे भ्रध्यवसान कहते हैं, रागादि भाव बुद्धिपूरव॑क हों, या श्रवुद्धिपूर्वक हों, समभे ्रतिहोंयानभ्राते हो--रागादिसे कलुषित जो परिणाम है, उसे भ्रध्यवसान कहते हँ । मिथ्या- इृष्टि जीव अध्यवसानको जीव मान बैठा है। क्रोध मान-माया-लोभ-राग-हे ष,




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