सच्चा सुख और उसकी प्राप्ति के उपाय | Sachcha Sukh Aur Uski Prapti Ke Upaaya

Sachcha Sukh Aur Uski Prapti Ke Upaaya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) परन्तु उसके ध्यान द्वोता दै जगतका। यद्द शिकायत प्रायः देखी और सुनी जाती है। इसलिये परमात्मामें मन जोड़नेकी जो विधियां हैं, उन्हें जाननेकी बड़ी आवश्यकता है। शाज्ञ- ' कारोंने अनेक प्रकारसे ध्यानकी विधियोंके बतछानेकी चे्टा की है। उनमेंसे कुछ दिग्दरीन यह्दां संक्षेपमें किया जाता है। यों तो परमात्माका चिन्तन निरन्तर उठते, बैठते,चढते, खाते, पीते, सोते, बोलते और सब तरहके काम करते हुए र समय ही करना चाहिये परन्तु साधक खास तौरपर जब ध्यानके निमित्तसे बैठे, उस समय तो गौणरूपसे भी उसे भपने अन्तः- करणमें सांसारिक सट्डुल्पोंकों नद्दीं उठने देना 'चाहिये तथा एकान्त और शुद्ध देशमें बैठकर ध्यानका साधन आरम्भ कर देना चाहिये। श्रीमीताजो्मं कहा है।- छचौ देशे प्रतिष्ठाप्प स्थिरमासनमात्मनः । नास्युच्छितं नातिनीच॑ चेलाजिनकुशोत्तरम्‌॥ तत्रैकाग्रं मनः छृस्वा यतचिततेन्द्रियक्रियः। उपविश्यासने युजञ्ज्या्योगमात्मचिशयुद्धये ॥ (६ । ११-१२ ) श्युद्र भूमि्मे कुशा,गगछाला और वद्न हैं उपरोपरि जिसके, ऐसे अपने आसनको न अति ऊंचा और न अति नीचा स्थिर स्थापन करके भौर उस भासनपर बैठकर तथा मनको




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