प्रलय - प्रतीक्षा | Pralaya - Pratiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कादे का ताना, काहें का बना «« ...!
निकालकर ले आई और अपनी पिढ़िया और पूनिरयों की
डलिया ठीक ठाक करके बैठ गई ।
अडोस-पढ़ोरा फे किसानों के यहाँ भी यहां होता था|
पुरुष खेता पर और घरों में अधिक काम करने लगे और
स्नरियाँ-जवान और बूढी सव--सूत कानती रहती । वर्षों
के याद घुढियों को जवानों से होड करने और उन्हें हराने
का मौका हाथ आया था । जब जवान छ्तियाँ मोटा मोटा
घूत कातकर लाती थीं तब बुढ़िया दृद लगाती शौर
उनका खूब मज़ाक उड़ाती थीं। आँखों की ब्योति फम हो
गई थी। हाथ पांपते थे। सगर फिर भी बुढ़िया बढ़ी
आसानी से सुदर खूत फातकर ले आती थीं। जवानों को
नई चीज़ सीखने में काफ़ी दिकात होती थी । बरन्तु कुछ
ही दिन में सब की अच्छा सूच कातना आा गया ओर
जवानों के सूत में दिन पर दिन उन्नति होतो देखकर
पार्थमारथी का हंदय आनन्द से फूलन लगा ।
“जवानों फो सीखने में कुछ भी समय नहों लगता
उसने पते विश्वस्त मिध शीर साथी कास्चकर्ता ভুল
रम् से फा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...