मुहम्मद - जीवन चरित्र | Muhammad - Jeevan Charitra

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Unknown by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) ईर्ष्या छोड़कर विचार कर तो शह को भ्र प जाने, क्योंकि মু सदने श्च श्च्ठ जाना था। तमी नमाज्ञ के लिये मनुष्यो ` को इकट्ठा करने को शहू बजाने की सलाह की थी और फरि- श्ते भी शङ्क को उत्तम जान कर अपने हाथ में रखते हैं। एक दिन मदीना फे यहदी रोङ़ादार थे । मुहस्मद्‌ ने पूछा कि यह कैसा रोज़ा है । उन्होंने कहा कि आज के दिन खुदाने मुसा को फ़रऊन के दाथ से वचाया था । मुहम्मद ने कदा कि यह रोज्ञा सुभाको धवश्य रसना चाहिये । निदान उख दिनके सुद्द- स्मद्‌ के आश्ञाचुसार मुसलमान व रोज़ा रखने लगे। षष्ट रोज़ा मुह॒र्रम महीने की १० तारीख़ को होता है और उसे रोज़ा (आशरा ) फहते ই। (सय ) यष् राज्ञा मुहस्मद्‌ ने मद्येना के यहदियों की देखा देखी किया है। इसी प्रकार बहुत बात॑ मुहम्मदने अपना मत फैलाने को यार को सम्मति से जारी की हैं। मुसलमानों का यद्द फथन है कि वह जो कुछ करता था खुदाकी भाज्ञा ही खे करता थः, मिथ्या है-। इसी वर्ष में मुहम्मद ने मदौने में. मसज़िद ( अ्रज्ञाम ) बनाहे । मदारिजुन्लुबुचत में लिखा है कि झुदम्मद ने एक अन्खार से कहा कि अपने मकान को ज़मीत बदिश्त के घर फे बदले में तु देसके तो हम घड़ी मसज्िद्‌ बनाये । उसने कहां कि सुकरो सामथ्यं नहीं कि चथा दु । फिर उस्मान ने घ जमीन उससे १०००० दिरम को मोल ली ओर मुंहस्मद्‌ को.वासते मसजिद के दी | तब मुहम्मद ने यारों को' ईड बनाने के लिये आशा दी | दीवार मसजिद्‌ की कच्चो ई टो से धनाई' और छत छुट्ारे की लकड़ीसे पाटी । छुत उस समय उसश्त मसजिद की ऐसी थी कि जच यपां होती थी तव पानी खपकता था और भिद्टी छुत में से गिरती थी और मसजिद्‌ में गारा रता था, गरे ही मे सिजदा करते थे।




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