अत्याचार का अंत | Atyachar Ka Ant

Atyachar Ka Ant by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 विरट आ पहुचा । जन समुदाय श्रात्सज्ञान, ब्रह्मघ्रान ॐ छोड कर, केवल भ्रशति की ही उपासना इने लग गया चाना प्रजार के भोगबाद सुखसपप्री, भिश्ना, चिप तुस्य परन्तु सुन्द्र २ यन्त्र कला कौशलों का आविष्कार हो रहो है, सुन्दर सुन्दर यन्त्र कला कौशल की श्रोर जन समुदाय खिंच रहा है । मनमोहनी बस्ते उन की सुख सामग्री वनी हे । भाया म जगत फ सता ज्ञाता है । ब्रह्मज्ञान, श्रात्यक्षान तो उने चिप्र तद्य दिखाई देने लगा हे (गांतम से ) तम জী। জিন माया के आविष्कार्यो के बैद भगवान ने झषिदा कहां है। क्या उस माया में फ स कर सखार अन्ध कूप में शिखा ?५ মাঝম় _নিগ্রথ मिरेगा ! उपचेदों के ऋषियों ने समाध्रि म॑ ही ज्ञान प्राप्त किया, परन्त आाविप्कार कुछुन किया। मे जक एन महान्‌ ग्रन्थों के अन्तिम सहावाक्यों का यान आता है तो मसार के भविष्य पर खेद होता है । पोरष -से। किस लिये? सत्य -बहा कहा है-विद्वान लोग इस णान को जानकर फ़॒तार्थ होबे तथा यत्न करते रद्द कि ससार मे कोई गेगी न होवे जिस से आयवद विदित शोपदियों की आवश्यकता पदे ऐसा कारण न होने दे जिस से आयी फा कोई विरोधी हो और डस के नाश हेत हमे विद्यत के शरदाशगामी श्च तेवार करके हिसा का शेषी वतना षडे । बासनाओं के ठास न थने । सम सदा परति को देखते हुवे तशा उ म रमते हुवे ओ उख के वशीभूत न व्यास;-मय दानव तथा विश्वकर्मा ने यत्रादि बना बना कर बडा श्रनथं किया । परन्त व लोभी जन श्रनकरण माच ` से प्रत्येक काये यन्त्रो से करते हं ! संसार श्रग्र यस्नाधनी - श्रालसी व निकम्मा होता जः रदा है ।




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