भारतीय वीरांगना | Bharatiya Virangana

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Bharatiya Virangana  by महालचंद वयेद - Mahalachand Vayed

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वीराङ्गना रानीवाई ६ महाराज दाहिर की राजरानी थी। छुछ इतिहासकारों का कहना है कि दाहिर की राजपत्नी का नाम “छाड़ी' था, लेकिन ध्वाचनामा' का छेखक उसे रानीवाई लिखता है और दाहिर की राजमहिषी को इतिहास की दृष्टि से 'रानीवाई' कहना अधिक युक्तिसद्गत दीखता है । | हिन्दुस्तान पर यवनों के आक्रमण आठवीं सदी से ही आरम्भ 'हो गये थे। तुकों के हमलों के बहुत पहले से ही हिन्दुस्तान तथा 'पश्चिमी यूरोप पर अरबों ने इस्छाम की पताका फहराने का प्रयत्न किया और यूरोप में तो वे कुछ अंश तेक सफल भी रहे, लेकिन हिन्दुस्तान में उनकी न चलछी। इतिहासकार लेनपूल लिखता दे कि , : हिन्दुस्तान के इतिहास में अरबों के क्षणिक आधिप एक “कहानी और इस्छाम के इतिहास में एक असफल विजय थी; जिसका परिणाम स्थायी न रह सका ! सन्‌ ७१२ ई० मे मुहस्मदं विन कासिम ने वगदाद्‌ के खलीफा का आदेश पाकर हिन्दुस्तान पर हमला किया । देवर को उजाड कर उसने वीरान कर दिया, मन्दिर की पवित्रता नष्ट कर दी । उसके बाद नैरन पहुँचा, एक चहुत बड़ा वेड़ा तेयार करवा कर उसने सिंध नदी पार करने की योजना वनायी। राजा दाहिर ने उसका सामना करने के लिये सेना तेयार की। उसकी राजधानी आलोर नगर में थी, लेकिन वह रावार के दुर्ग से हमछा करना उचित सममता था। वह अपने पुत्र जयसिह और पत्नी रानीवाई को छेकर रावार के किले में चक्ा गया। दाहिर और उसके “ठाकुरों'




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