पचास कहानिया | Pachaas Kahaniyan

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Pachaas Kahaniyan  by Shri Vinodshankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हृदय की कसक उसने मेरी बातों का कोई उत्तर नहीं दिया | मैंने फिर कहा-- यह तो बताओ तुम मेरी श्रात्सा को प्यार करती हो या क्षण-भड्र शर्रार को ? आपकी आत्मा को | तो देग्वो--यह शरीर और रूप एक दिन मिट्टी में मिल जायगा किन्तु मेरी आत्मा सदा तुम्हारे साथ रहेगी । मेरा शरीर चाहे कहीं भी रहे लेकिन तुम्हें मेरे वियोग का दुःख नहीं उठाना पड़ेगा | मेरी बात सुनकर उसके हृदय पर बड़ा आघात पहुँचा । उससे कहदा--उदेख ली मैंने आपकी फिलासफी अच्छा आप जाते ही हैं तो जाइये पर अपनी इस दासी को भुला मत दौीजियेगा | यह कहते-कहते उसका मेंह पीला पड़ गया । बगल से उसने एक सुगन्घित रेशमी रूमाल निकालकर कहा--सीजिये यह हे मेरी याददाश्त मेंने रूमाल लेकर उसकी खुशबू से तबीयत को तर किया--फिर उसे आँखों से लगाते हुए जेब में रख लिया । मैंने अपने ट्रक से दो किताबें निकाली और उसे देते हुए कहा--लो ये ही तुम्हें मेरी याद दिलायेंगी । उसी दिन रात की ट्रेन से सबसे बिंदा होकर में घर की शोर चल पड़ा । चलते समय उसकी डबडबाई आँखों ने कहा--ठुम बड़े निदंय हो रे घर आये कई मास बीत गये । वर्षा ऋतु का अन्त था | बरसते हुए बादल अब कम दिखाई देने लगे थे | प्थ्वी पर से श्यासल-छाया अब खिसकने लगी थी । आकाश में स्वच्छता अधिक अर पवन में शीतलता बढ़ चली थी |




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