ऋग्वेद शतकम् | Rigved Shaktam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे न बज “बड़. “न “एज, ० “चर, न “न पाकर: पर> किन रफन रह हिंसा-रददित यज्ञ ण् शै है सम्‌ू) कीति दाता और ( वीरवत्तममू ) # जिस धन में अलन्त विद्वाद्‌ और शूरवीर है पुरुप विद्यमान हैं । है . नाता परमेश्वर की उपासना करने से ओर उसकी बैदिक आज्ञा में रहन से ही सलष्य, ऐसे उत्तम धन को प्राप्त होता है कि, # जो धन प्रतिद्नि बढ़ने वाला; मनुष्य की उष्टि करने वाठा और यश देने वाला हो । जिस धन से पुरुप, महाविद्वान्‌ शूरवीरों से उुर दोकर, सदा अनेक प्रकार के सुखों से ह युक्त होता हे, ऐसे धन की प्राप्ति के लिये *ै भीउत भगवान्‌ की भक्ति करनी चाहिये ॥३॥। अग्ते ये युज्मध्वर॑ बिश्वतः परिभूरसि | कि: ऊन फिन किन कप स इद्देवेपु गच्छति ॥४॥ ११1४॥ कि “५ सि- “सके” 5» “प्छिन रडि “बन “व... “व. यह+- “कक “दर. “चाफ- “चाऊ- “चेक “कर “पर “छः कि पि बल, ना, न नरक विकिनवीदिन दिन “पक बाकि नसिफि सिक ,दिपिल नललिन हवन “किन कि,




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