मुद्रा , बैंकिंग , विनिमय और विदेशी व्यापार | Mudra Banking Vinimay Aur Videshi Vyapar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
453
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुद्रा की परिभाषा, प्रकृति एवं कार्ये ष्
ऐसी होती है जो एक ही। दृष्टिकोण को सतुष्ट करतो हे, ठीक यह ही बात मुद्दा की
परिभाषाओं के सम्बन्ध में भी लागू होती है । यह भ्रवश्य है कि सौमाग्य से मुद्रा की सभी
परिभाषाओं में एक तार मिलता है, किन्तु एक अन्तर भी, परन्तु जो अन्तर मिलता है
उसके आधार पर हम कुछ विज्येप दृष्टिकोण बना सकते हैं। यह ही दृष्टिकोण उन
प्रिभाषाओं के प्रतिनिधि है और इन्ही के प्राधार पर परिभाषाओं का वर्गीकरण निम्न
प्रकार कर सक्ते है 1
(१) वधानिक परिभाचाये (1.व्ट् एलष्पनाऽ)
(२) वर्णनात्मक परिमापापिं (८७८४८ 06०३)
शरीर (३) मुद्रा को स्वश्रहशोयता पर आधारित মহিসান্া্রী (18703110705
08560. ০0 0070 £90191 20060180111 01 7101065)
वैधानिक परिभाषायें লন (75107) অথা ভীতিং (112%87০5) অব
अर्थज्ञास्त्रियो का मत है कि सरकार द्वारा घोषित की हुई बस्तु मुद्रा कहलाती है ।*
यह सभी को मालूम है कि आजकल सरकार द्वारा ही मुद्रा का प्रचलन होता है झौर
जो वस्तुए सरफार द्वारा मुद्रा धोषित कर दी जाती हे, वह ही मुद्रा के रूप में चलती
रहती ह । इनको ग्रहणा करना हर व्यक्ति के लिए झनिवायें है श्लौर जो इनको मुद्रा
के रूप में लेने के लिए तेयार नहीं होता उसको सरकार द्वारा दड भी दिया जाता
है, प्र्भात् बहुत सी ऐसी बस्तुएँ मुद्रा के रूप में चलन मे भरा जाती है. कि यदि उनके
पीछे कानूनी दबाव न होता तो कोई भी उन्हें ग्रहण नहीं करता १ जैसे कि कागजी
मुद्रा की जब सरकार कानूनी अ्रहशता समाप्त कर देती हे वो कोई भी उन्हे मुद्रा
सही मानता) ग्रतः मुद्रा में सवेग्रहशवा सरकारी दबाव के कारण है, न कि उसकी
अपनी शक्ति द्वारा या अपने गुणो द्वारा । परन्तु कभी ऐसा भी होता है कि सरकार
की प्रोर से घोषित होते हुए भी मुद्रा सर्वग्रहश नही होती । यह परिस्थिति अधिक
मुद्रा-प्रसार हो जाने के कारण वंदा हो जाती है, जेसा कि प्रथम महायुद्ध के पश्चात्
जमंनी मे हुआ । जबता का मुद्रा पर से विश्वास हटने लगा, सरकार ने हजारो प्रयत्न
किये--कडे से कड़े नियम बनाग्रे--मुद्रा स्वीकार न करने वाले के लिए मृत्यु ও হা,
परन्तु फिर भी जनता का मुद्रा में विश्वास वे जम सका, जवकि सरकार ते कागजी
मुद्दा को भूमि में परिवतेनीय करने की घोषणा कर दी । दसलिए मुद्रा की स्वीकृति
सरकारी घोषणा पर नही वल्कि जनता के विश्वास पर निर्भर होती है। अतः नेप का ॥
दृष्टिकोण पूर्णतया सत्य नहीं है । इसके भ्रतिरिक्त एफ कमी और भी प्रतीत होती है।
मुद्रा विनिमय का माध्यम होतो है झौर विनिमय अर्थज्ास्त्र के दृष्टिकोण से स्वतन्त्र
तथा ऐच्छिक (1८6 धात ५र्णण्ताक्षा9) होना चाहिये । यदि मुद्रा की स्वीकृति
सरकार द्वाश घोषित कर दी जाती है और उसका ग्रहण करना ग्रनिवार्य कर दिया
जाता है तो विनिमय का स्व॒तस्त्र तथा ऐच्छिक नहों होता | अत-नैप की परिभाषा
का यह एक बडा दोष है। यह रात्य है कि वेघानिक और व्यवहारिक दीनों ही दृष्टि-
৫৬ হত ও 8০০চ ০131০7155৮9 ৫5 ৪৫8০০
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