दृष्टान्त कथाएं | Drishtant Kathayen

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Drishtant Kathayen by ज्ञानी चंदा सिंह - Gyani Chanda Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथा व्याग्याव भण्डार ^ বল নই को इस बालक और इसकी माता की क्रथा नां गजा ने समय न होने का काररा पूछा, तब वह कहने भ्राज मेरे जीपन का अन्तिम दिन है | चह लड़का और वी दोनों राबण की राजधानी में भंगन और बेटा रूप में श्प्रगद हौ रारण -की कन्या कै साथ शादी रोगी यह यमे कहूँगी अपर में नदी पर जाकर स्नान कर और पति के लिये जल छी गागर भरकर घर पह़ेँचाऊँगी तो मेरे मकान की छत मेरे ऊपर गिर ज्ञायगी और में मर जाऊँंगी | इसलिये अन्तिम सर्मय में कुछ ईश्वर-स्मर्ण कर ভু? कथा सुनाने में व्यर्थ संमय न दूँ गी, ऐसा कह कर बह चल पडी । गजा जनक उसके पीछे २ गये और कहा कि में राजा जनकैः हूँ, हैं तेरे से पूछना चाहता हैं कि तुझे केसे पता चला मेरे पर छत गिरमी | उस स्त्री न कहा मे पति बत-धर्म के श्रभाव से भविष्य का सब हाल जानती हैँ । फिरि কাজা ললঙ ने कहा उससे वच क्यों नहीं जाती, घर जाती ही क्‍यों हो १ तय उसने कहा भातरी अमिद है, भावी के आगे, किसी का वश नहीं चलता। पुनः राजा ने कहा फ्रिसी राजा महा- হারা যা ইল বহুল ঘা ই বাতি ম आये हुये, अद्या, पिप्ण, शिवादिकों का वश तो चलेगा, थे तो भावी को




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