श्री भगवत-दर्शन :- | Shree Bhagwat Darshan

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Shree Bhagwat Darshan by श्री प्रभुद्त्तजी ब्रह्मचारी - Shri Prabhudattji Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३१) वथा | यही उसके पहले व्रिज्ञापनों मेँ सर्वदा पता -भी था । १०८ खन्डं का विचार तो पीछे घना ६० से अधिक भाग लिख भी गये। कथा स्राग समाप्त भी हो गया। गौओ के लिये त्‌ अपने সাহা জী হী नहीं दे देता । इस विचार के आने पर मैंने अपने पॉच सात सम्माननीय बन्धुओ से सम्मति की, यदि मुभमें इतना गो प्रेम होता कि एक एक केण भी गौ ह्या मेरे लिये असह्य दो जाती तव तो सम्मति आदि की आवश्यकता ही नहीं पडती। गौ प्रेम की न्‍्यूनता से, प्राणों के मोह से और सावजनिक प्रश्न होने से मैंने अपने से अधिक अनुभवी और विद्वानो से सम्मति लेना आवश्यक समभा । यद्‌ सब मेंने देख लिया कि यह काम अशास्त्रीय तो नहीं है। यय्पि यह बात मैंने नतो किसी समाचार पत्र मे छपायी न বন साधारण में प्रकट द्वी किया, क्योंकि जिस प्रकार मैं बाणी पर संयम रखने का प्रयत्न रता हूं उसी प्रकार लेखनी का सयम ण्पने की चेष्टा करता हूँ। कोई बात असत्य वनावटी न निकल जाय । इसका पालन कहाँ तक होता है इसे सर्वोन्तयोमी प्रभु ही जाने। हाँ, तो बहुत गुप्त रखने पर भो बात फैल-सी गई । 'चलिया में एक सन्त ने राजपि टएडन से भी कह दी। थे सुनते ही मेरे पास भूूसी दौडे आये। उस समय में नित्य का फीतन कर रहा था। टएडन जी ने मेरे एक साथी से पूछा “ब्रह्मचारी जी का शरीर ठीक है न ९” उन्दने का “ह ठीक है. !” फिर उन्होंने पूछा “उनकी चुद्धि ठीक है न १” इसका वे क्या उत्तर देते। कीदन करके जब मैं निशत्त हुआ तो थे हसते हुए थोले “मैंने पृद्धा था सुम्दारी बृद्धि ठीक है न मेरे प्र का अमिप्राय तुम सममझ-ही गये होगे १९




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