हास्य की रूपरेखा | Hasya Ki Rooprekha

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Hasya Ki Rooprekha by S. P. Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे. सवगुणो का. प्रतिकार किया, उनका शमन किया और मानव जीवन पर घिर- थिर आने वाले चदर्ली को छिन्न-विच्छिन्न केरनें का सतत प्रयस किया और आल भी चर रहा हैं । सन्तोष॑ केवल इस बात का है कि देवों ने हास्य का मदत्व न समझा और उसका अधिकार अंदेवों को दे दिया; और झदेवों से प्राप्त इस अमोध अख्र द्वारा मानव ने, देवों के समस्त श्रास और डुम्ख, पीड़ा तथा व्यथा सबका निराकरण किया और उनकी समस्त कुचेष्टाओं को विफल बनाया । देवासुर सग्राम मे दुर्भाग्य से यदि झमृत-घट के साथ-साथ देवता हास्य-खहरी भी ले भागते तो आज मानव दीन, डुश्ली तथा निरुपाय रददता आर दुःख के दिन हँस-हँस कर न काट पाता । उसकी भीगी पलकें कमी न सूखी; उसके जीवन में वर्सत कभी न आता । हास्य के यरद-हस्त के नीचे मानव ने मृत्यु को चुनौती दी और हूँसते-हँसते प्राण तज दिये । दास्य॑ं-रूपी गोवर्धन के नीचें दुख के ओले और पीड़ा की झडी टकरा-टकरा कर छिन्न- विच्छिन्न दाती रही और सुरक्षित मांनव उसके नीचे रग-रलिया मंनाता रददा । परन्दु इतना सब होते हुये भी मानव, कभी-कभी, अपने 'इस चरदान का भूल्य जानकर भी भुल्ावे में आता रहदां और देवताओं के चंगुल में घरवस खिंचता रहा। और ऐसी विपम परिस्थिति में उसने हास्य को मानवता की परिधि में तो रखा परन्तु उसका सम्बन्ध चालकों के जीवन से जोड़ दिया । हास्य को घाल- जीवन से समन्वित कर वह एक ओर तो देवानुरागी चना रहा और दूसरी ओर आपने नैसर्गिक वरदान की ओर भी लोडप दृष्टि से देखता रहा । और जब-जब उसे समय मिला उसने देवों की आँख बचों कर बालकों के साथ किलकारी भरी; उनके हास्य में वह साश्नीदार चना ; और देवों की आँख उठतें ही आंखें नीषवी किये व्दीं से भाग निकला । अन्ततोगत्वा एकाकी बैठ कर वह वा-लोला, चाल-क्रीड़ा, मामोद-प्रमोद, हास्य-विनोद के चित्र, कभी दाब्दों में, कमी रगों में और कमी मिट्टी अथवा प्रस्तर खंण्डो पर चित्रित करने लगा । चाल-सादित्य में मनोर॑जन एवं हास्य की प्रतिप्ठा कर मानव ने अपने एक घोर सामाजिक पाप का प्रायद्चित किया है । बालकों के द्वास्व के प्रति वयस्कों तथा बद्धों छा साकर्षण इसका सचल प्रमाण रहेगा | यदि मनस्तल-शाख्र को दृष्टि से देखा जाय तो जो व्यक्ति दास्य के विरोधी हुये उन्होंने अपने लीवन को अत्यन्त लटिल बनाया और इस नैसगिक गुण को झंठित करने की चेछा में अपने को अनेक अमानवी अयवा असामाजिक दुर्गु्ों के 'चफ्यूढ में फंसा दिया; चन्दी घना दिया | यदि शिक्षा-दीक्षा का नियन्त्रण उन पर न होता तो वे ऐसे-ऐसे कार्य कर चलते जा इतने कर तथा पाद्यविक दोते




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