ब्रह्मचर्य | Bramcharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देवोंका अंशावतार | १५
«४ ( १) उसमें सब देव देवीशक्तियों सहित प्रविष्ट हों ।
(८२) जो के देव हैं वे सब उसमें आश्रय लेते हैं । (३) यह
( शरीर रूपी ) चमस है, इससे देव अमृतका पान करते हैं, इससे
अमृत पीकर सब देव हर्षित हों | ” इनमेंसे दूसरा मंत्र परमात्माके
विषयमें विशेषतः है । परतु जो देवादिकोके संबंधकी व्यवस्था परमा-
त्माके वर्णनमे आदी है, वही अशरूपसे अल्पप्रमाणमें जीवात्मामें
घटती है | यह बात वेदमें सर्वत्र है । उदाहरणके लिये पंचमहाभर्तों
काही उदाहरण लीजिये | जगतूमें जो पंचमहाभत हैं वे परमात्माके
आधघारसे हैं, इसी प्रकार पंचमहामर्तोके जो अंश इस शरीरम हैं वे सब
जीवात्माके आधारसे रहते हैं । सत्र यही व्यवस्था होनेके कारण किसी
स्थानपर् परमात्माका वणेन हो अथवा नीवात्माका वणेन हो, उनका
सामान्य अथ दोनों स्थानोंपर लगता है । इसी रीतिसे इस ब्रह्मचारी
सूक्तके कई मंत्र जीवात्मापरमात्माका बोध करा रहे हैं, इसका कुछ
वर्णन इस ठेखमें पिरे बताया है, ओर शेष वर्णन सकतकी व्याख्यामें
क्षिया जायगा ।
इस प्रकार शर्रारमें देवताओंका अंशावतरण हुआ है और इस
शारीरम सन देव रहते है, यह वैदिकं सिद्धांत निश्चित रीतिते सिद्ध
है । तथा--
देवाः पुरुष आ विहान् } अथव. ११।८१३; १८, २९।
& देव पुरुषमें घुसे हैं | यह वाक्य अथर्व ११।८ में तीन
बार आगया है। इस सकक्तमें तो मनष्य शरीरका ही वणेन है
तातय “ शरीरमें देवोंका प्रवेश हुआ है, ओर सब देव हमारे
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