ब्रह्मचर्य | Bramcharya

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Bramcharya  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवोंका अंशावतार | १५ «४ ( १) उसमें सब देव देवीशक्तियों सहित प्रविष्ट हों । (८२) जो के देव हैं वे सब उसमें आश्रय लेते हैं । (३) यह ( शरीर रूपी ) चमस है, इससे देव अमृतका पान करते हैं, इससे अमृत पीकर सब देव हर्षित हों | ” इनमेंसे दूसरा मंत्र परमात्माके विषयमें विशेषतः है । परतु जो देवादिकोके संबंधकी व्यवस्था परमा- त्माके वर्णनमे आदी है, वही अशरूपसे अल्पप्रमाणमें जीवात्मामें घटती है | यह बात वेदमें सर्वत्र है । उदाहरणके लिये पंचमहाभर्तों काही उदाहरण लीजिये | जगतूमें जो पंचमहाभत हैं वे परमात्माके आधघारसे हैं, इसी प्रकार पंचमहामर्तोके जो अंश इस शरीरम हैं वे सब जीवात्माके आधारसे रहते हैं । सत्र यही व्यवस्था होनेके कारण किसी स्थानपर्‌ परमात्माका वणेन हो अथवा नीवात्माका वणेन हो, उनका सामान्य अथ दोनों स्थानोंपर लगता है । इसी रीतिसे इस ब्रह्मचारी सूक्तके कई मंत्र जीवात्मापरमात्माका बोध करा रहे हैं, इसका कुछ वर्णन इस ठेखमें पिरे बताया है, ओर शेष वर्णन सकतकी व्याख्यामें क्षिया जायगा । इस प्रकार शर्रारमें देवताओंका अंशावतरण हुआ है और इस शारीरम सन देव रहते है, यह वैदिकं सिद्धांत निश्चित रीतिते सिद्ध है । तथा-- देवाः पुरुष आ विहान्‌ } अथव. ११।८१३; १८, २९। & देव पुरुषमें घुसे हैं | यह वाक्य अथर्व ११।८ में तीन बार आगया है। इस सकक्‍तमें तो मनष्य शरीरका ही वणेन है तातय “ शरीरमें देवोंका प्रवेश हुआ है, ओर सब देव हमारे




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