सद्विचार मुक्तावली | Sadvichar Muktavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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| अचानक दह के हाते हैँ सबरोयें खड़े ॥
छुट उसकी दया से ये हरे पत्त नहीं ।
| ताड ते इनका उदे परस हती कदी ||७॥
| कंप उट सवाक पत्त क तरह धरती दहि ।
राज, घन, जाता रहे पद, मान मिटद्ठी मे मिल ॥|
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जीभ करारी जाय, फाडी जायं आंख मुंह सि
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सकडा टकंड बदन हो पते चमड का छेल ॥
छाड सकता उस समय भा वह नह अपना घरम |
जब रह हरएक राय नांचत चमट गरम ॥८।
? चीरों की चक्के सब लाग हो जावे भले ।
दय! स মাইমাক্কা আল মুক্ত সা जल ॥
লুনা नेकक, घरम का, पापका बादल टले |
हैं प्रभा ससार का हर एक घर फूल फल ॥
इस घरा पर प्यार को प्यारी सुधा सब दिन बह ।
शान्ति की स्व ओर सुन्दर चांदनी थिटको रहे ॥
সা,
अयोध्यासिह उपाध्याय ।
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