दस एकांकी | Das Ekanki

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Dus Ekanki by Amarnath Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है 2 महात्मा गाधी का सिंध है तो दशक, पाठक उस वाक्ष में स्थित पात्र के विचारों से सहुज हो परिचय प्राग्त कर लेंगे । अत स्पष्ट है कि एकाकी मे रगनसकेन या सकेत का विशेष महत्त्व हूं । न्माव ऐवप--एकाकी में घटना होती है पर घटनाएँ नहीं, समस्या होती है, समस्याएं चही, इसलिए सम्पुर्ण एकाफी उसी समस्या या उस विचार की ओर अगसर होता रहता है जो समक्ष है । एकाकी अपने पाठफ के ऊपर एक प्रभाव विदोप छोड जाना चाहता है और यदि बह उस समस्या का, जिसे वह लेवर चला है, हल भी सुका दे तो उसके कलात्मक सौन्दर्य मे किसे सदेह हो सफता है । सारा है कि प्रभावान्विति एकाकी की अपनी कलात्मक विशेषता है । एकांकी के प्रकार भ्रकार की हृष्टि से एकाकियो को निम्नाकित वर्गों मे रखा जा सकता है १. सुख्वान्त एकाकी, २ दु्बान्त एकाकी, ३ प्रहसन एकाकी, ४ फेस्टेसी, ५ गीति-नाद्य, ६ काँकी, ७ संवाद या सभाषण, ८ मोनो-ड्रामा, € रेडियो नाटक इत्यादि । , . सुखान्त एकाकी का उद्देश्य भी प्राय. वह्दी है जो वडे सुखान्त नाटक का होता है । अन्तर केवल परिधि की सक्षिप्तता का है। सुखान्त एकाकी मत्पकाल में कोई आानददाथक क्षण या समस्या उत्पन्न करता है । किसी समस्या विशेष को समक्ष रउकर ही इनका निर्माण होता है । इसी कारण इन्हें समस्या एकाकी कहते है । प्रहसन का उद्देश्य व्यक्ति या समाज की किसी त्रुटि, रूढि, दुर्बलता अथवा दुर्गुण को प्रकाश में लाकर उपहास की वस्तु वना देना है । नाटककार का लक्ष्य हंसी-हसी मे समाज-सुधार करना होता है । फेन्टेसी एकाकी का अति नाटकीय रोमाटिक स्वरूप होता है जिसका ताना-वाना स्वप्न से बना हुआ होता है. । गीति-नाव्य मे कविता या गीतों के माध्यम से एकाकीकार किसी भावपुर्ण स्थल का-चित्राकन करता है । भाँकी मे सकलन-न्रय के अनुसार किसी उद्दीप्त क्षण को अकित किया जाता है। सभापण एकाकी कला का पहला रूप है । इसमे दो




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