सुभाषितावली | Subhashitavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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) हिं० अधथे-पमसे मनृष्यको पुत्र, पत्र, ग्रह, वाहन, वस्तु, राज्य, अलं-
कार वगैरा सब्च कुछ मिलता
वर छ्टदसमर तु भ्रमेयुक्तस्थ जीवित ॥ तडीौनस्थ
हथा वषकाटाकोटि विद्पतः। २०॥ ॥ ||
म० अथे-पाभिक मजुष्यायें एक मुहत्तोच आयुष्य बर; परंतु, पातका
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मनुष्याचे कोव्यावर्धि वषापेक्षां ज्यास्त असले तरी ভ্যখ होय
हिं० अथ-धार्मिक मनष्यका एक महतेमात्रका नीवितभी बहत्तर हे; परंत,
पातकी मनप्थका कोव्यवेधी वषमे जियादा निवित हो तोभी वह व्यथे है
यमद्मशसजातं स्वकल्याणबीज सुगातिगमनहेतलु
लाथनायेः प्रणीतं ॥ सवजलनिधिपातले सारपाथ-
বহু युटमतुलसुखानां घमेमाराधयत्वं ॥२१॥
, प० अथ-यम, नियम, शांति घांपासून उत्वन्न दोणाच्या धमचा तु
अंगिकार कर; धथ दहा सवै कस्वाणांसं मृ अ.हे; मोक्षसाधनास
कारण आहे; तीर्यकरांनी आचारिलेला आहे;। संसारसम॒द्रांत नोका
आहे; मोर्ठे उत्तम प्कारचें फराणाचें आहे; अमयाद युखायचें घर अहि
हिं० अर्थ-यम, नियम, और হানা उत्पन्न होनेवाछे धमेका নু অনি
कार करः; धम सब कल्याणकी जड़ है; मोक्षतापनकों कारण है, तीथंकराने
कहाहवा ह; समारसमद्रम नका है; उत्तम प्रकारका तोंपा है; ओर अनंत
सखका स्थान है! ॥ इलि घस वणन ॥
पाय वणनं। पाप হাল তব विदडिश्वश्राति८ग्गातिप्रद |
रागक्लशादि भाण्डारं सत्यरःखाररं णा ॥ २२॥
प्० अथं-पातक हं माठं वरी आहे অল नागः; ह नरकगतीसि ब
पशुगतीस नत; रागव व दुःखाच भांडार आहे; षर मनुष्यांस खराः
रपर इःखद्ायक आदे.
हि० अर्थ-पानक শহু অহা হাসু ই তলা जान ले; यह नरकगति व
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