षट्खंडागम: | The Satkhandagam

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The Satkhandagama Vol-xvi(1958) by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) यत्स्थिति कहते समय नरकायु आदिकी अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिमें एक आवलिकम उत्कृष्ट आबाधाकाल भी सम्मिलित कर लिया है । इसप्रकार उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमके प्रमाणका अनुगम करनेके बाद जघन्य स्थितिसंक्रमके प्रमाणका निर्देश किया है। खुलासा इसप्रकार है--पाँच ज्ञानावरण, चन्षुदशनावरण आदि चार दर्शनावरण, सम्यक्त्व, संज्बलन लोभ, चार आयु ओर पाँच अन्तराय इनकी एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण स्थिति दोप रहने पर उदयावलिसे उपरितन एक समयमात्र स्थितिका अपकपण होता है, इसलिए इनका जघन्य स्थितिसंक्रम एक स्थितिप्रमाण है और यत्स्थितिसंक्र समयाधिक एक आवलिप्रमाण है । स्त्यानग्रद्धित्रिक, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कपाय सखीवद, नपुंसकवद्‌, नरकगतिद्धिक, तियच्चगतिद्धिक, एकेन्द्रिय रादि चार जाति, श्रातप. उद्यो, स्थावर, सृच्म ओर साधारण इनकी क्षपणा होनेके श्न्तिमि समयमे जघन्य स्थिति पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होती है, इसलिए इनका जघन्य स्थितिसंक्रम उक्त प्रमाण कहा है। परन्तु क्षपणाके अन्तिम समयमें इनके उदयावलिमें स्थित निषेकोका संक्रम नदीं होता, इसलिए उक्तं कालम उद्‌यावलिके मिला देनेपर इनकी यस्स्थिति उद्याबलि अधिक पस्यके असंख्यातवें -भागप्रमाण होती हे। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि জীন मौर नपुंसकवेदकी यत्स्थिति उदयावलि अधिक न कहकर अन्‍्तमुहते अधिक कहनी चाहिए, क्योंकि इन दोनों प्रकृतियोंकी क्षपणाकी समाप्ति अन्तरकरणमें रहते हुए होती है और अन्तरकरणका काल उस समय अनन्‍्तमुहत शेप रहता है इसलिए यह स्पष्ट हे कि अन्तरकरणमें इनके प्रदेशोंका अभाव होनेसे यतव्स्थिति इतनी बढ़ जाती है। निद्रा और प्रचलाकी स्थिति दो आवलि और एक आवलिका असंख्यातवाँ भाग शेप रहनेपर इनकी मात्र उपरितन एक स्थितिका संक्रम होता है ऐसा स्वभाव है, इसलिए इनका जघन्य स्थितिसंक्रम एक स्थिति ओर यत्स्थितिसंक्रम आवलिका असंख्यातवाँ भाग अधिक दो आवलि होता हैं। हास्यादि छुहकी क्षपणाके अन्तिम समयमें जघन्य स्थिति संख्यात वपप्रमाण होती हे, उमलिए उनका जघन्य स्थितिसंक्रम संख्यात वर्ष- प्रसाण होता है। पर इनकी क्षपणाकी समाप्ति भी अन्तरकरणमें रहते हुए होती है ओर उस समय अन्तरकरणका काल अन्तसुहूतं शप रहता दं, इसलिए इनकी यत्स्थिति अन्तमुंहत अधिक संख्यात वप हाती हे । क्राधसंञ्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध दो महीना प्रमाण हाता ह, मान- संञव ननकरा जघन्य स्थितिवन्ध एक मदीनाप्रमाण होना £, मायासंञ्बलनका जघन्य स्थितिवन्ध अधे मासप्रमाण होता है ओर पुरुपवेदका जघन्य स्थितिबन्ध आठ वपग्रम/ण होता है। इन प्रकृतियोंक्रे उक्त स्थितिबन्धमेंसे अलग अलग अन्‍्तमु हतप्रमाण अबाधाकालके कम कर देनेपर उनके जघन्य स्थिति संक्रमका प्रमाण आ जाता है जो क्रमशः अन्तमुंहूते कम दा माह. अन्तमुहूतं कम एक माह, अन्तमु हत कम अधैमास और अन्तमुहते कम आठ वर्षप्रमाण होता है। तथा इनका यस्थितिसंक्रम क्रमसे दो आबलि कम दो साह, दो आवलि कम एक माह, दो आवलि कम अधमास ओर दो आवलि कम आठ बर्षप्रमाण होता है, क्योंकि अपना अपना जघन्य स्थितिबन्ध होनेपर उसका एक आवलि काल तक संक्रम नहीं हाता, इसलिए अपने अपन जघन्य स्थितिबन्धमेंसे एक आबलि तो यह कम हो गई ओर संक्रम प्रारम्भ होने पर वह एक आवलि काल तक होता रहता है, ःसलिए एक आवलि यह कम हो गई । अतः इन प्रकृतियोंके जघधन्य यत्स्थितिसंक्रमका प्रमाण अपने अपन जघन्य स्थितिबन्धमेंसे दो आवलि कम करने पर जा प्रमाण शेष रहे उतना प्राप्त होता है। अब रहीं शेप प्रकृतियाँ सो उनकी जबन्य स्थिति सयोगि- केवलीके अन्तिम समयमें अन्तमुंहतेप्रमाण होती हे, इसलिए वहाँ पर उसमेंसे उदयावलिग्रमाण स्थितिको छोड़कर शेष स्थितिका संक्रमण सम्भव होनेसे उनका जघन्य स्थितिसंक्रम उद्यावलि




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