मध्यकालीन भारतीय साहित्य में अंतर्ज्ञान की व्याख्या (1963)ac 4735 | the Of Incarnation In Medieval Indian Literature An Interetation (1963)ac 4735

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the Of Incarnation In Medieval Indian Literature An Interetation (1963)ac 4735 by डॉ. कपिलदेव पांडेय - Dr. Kapil Dev Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १& ) अवतारी, भौर लीखास्मक रूपो का निरूप किया गया है । ग्यारहवें अध्याय में वासुदेव-कृष्ण, गोपाल-कृष्ण और राधा-कृष्ण प्रमुति कृष्ण के विभिन्न रूपों के क्रमिक अध्ययन के पद्मातु मध्यकासीन साहित्य में प्रचलित कृष्णकर्रामृत के गोपीकृष्ण और गीतगोविंद के राधाकृष्ण का अन्दर स्पष्ट किया गया है ! भक्त कवियों की काब्याभिव्यक्ति में अर्चा अवतारों का जया स्थान था अभी तक हिन्दी साहित्य में समुचित ढंग से इस पर विचार नहों हुआ था । इस निबन्ध के आरहदें अध्याय में अर्चाछ्प के क्रमिक विकास, उनके व्यक्तिगत बैशिष्टयों तथा वाला और भक्तपमाल साहित्य में व्याप्त उनके अवतारोचित कार्यों ओर रूपों का विशद विकेधन किया गया है। तेरहवें अध्याय में मध्यकालीन वैष्शन आचायों और प्रवर्तकों के अवतार एवं अवतारी रूपों के क्रमिक विकास और उनके साम्प्रदायिक उपास्य रूपों का निरूपण हुआ है। अभी तक इनके अवतार- बादी रूपों के प्रासंगिक उल्लेख हुआ करते ये परन्तु हस अध्याय मे रामानुज, माध्व, निम्बारक, वक्ञभ, चैतन्य, रामानन्द, हितहरिवंश प्रभृति आचार्यो और रसिक भक्तों को साम्प्रदायिक परम्परा का अध्ययन करते हुए यह बताया गया है किं इनका अवतारीकरण इनसे सम्बद्ध कतिपय दिष्वासो भौर मान्यताओं पर आधारित रहा है । | अंतिम अध्याय में भक्तों के उपास्य रूपों का निरूपा! करने के अनन्तर उनके विविध अवतारोबित कार्यो का विवेचन किमा गया हैं और वाल्मीकि, ग्यास, जयदेव, प्रमृति कवियों एवं पुराणकारों की अवतार परम्पराओं का परित्रय दिया गया है। इस युग में प्रचलित वार्ताओं में मक्तों ओर रक्षिकों द्वारा लीला के निमित्त धारण किए हुये सख्ला और सखी रूपों पर भी विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त अन्य विविध रूपों में आलोच्यकालीन राजा, भागवत, गंगा, यमुना, उमा, हनुमान ओर रामानन्द के द्वादश शिष्ष्यों के अवतारबादी रूपों का निरूपण हुमा है । अंत में अवतारवाद को प्रवृक्तियों और रूपों के साहिस्यगक्ष विक्षासमरं योग देने बाले पौरारिक एवं आलंकारिक दो प्रधान तत्वों का महत्व बताया गया है । इस प्रकार इस निवन्ष में बौद्ध सिद्धसाहित्य से लेकर भक्तमाल तक विभिन्न रचनाओं में भभिव्यक्त अवतारवादी प्रवुत्तियों के आकलन, विश्लेषण एवं विवेचन का प्रयास किया गया है । इस महत्‌ प्रयत्न में सम्बद्ध संदर्भ ग्रन्थों के अतिरिक्त सहृख्रों ऐसो पुस्तकों और पत्रिकाओं में मटकना पड़ा है, जिनमें मुझे अपेक्षित सामग्री नहीं मिलो ।




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