साहित्यदर्शन | Sahitydarshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जानकीवल्लभ शास्त्री -Jankivallbh shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस आध्यात्मिक व्याख्या में हम नवयुग की साहित्यिक प्रवृत्तियों का
प्रतिबिब पाते हें । सक्षेप में, यह व्याख्या साधनमय, आदर्शात्मक,
सांस्कृतिक और प्रसरणशील साहित्य की मापरेखा है। इस व्याख्या
से साहित्य का स्वरूप-निरदेश भले ही न होता हो, उसकी विशुद्ध प्रकृति
का आभास अधश्य मिल जाता है। यह व्याख्या अनिदिष्ट भले ही
हो, संकीणं भीर असंयत नरी है ।
'संकोण' और “असंयत' शब्दों से मेरा कया आशय है, यह भी
स्पष्ट कर देना चाहता हैं । आचाये जानकीघल्लभ की इस व्याख्या के
साथ आचार्य रामचन्द्र शुक्कु की घह परिभाषा लीजिए जिसमें वे
कहते हैं कि जगत् ब्रह्म की (या सत्य की) अभिव्यक्ति है ओर
स.हित्व जमत् के नाना भयों की अभिग्यक्ति। आचाये शुक्क ने सत्य
ओर साहित्य के बीच में जगत और उसके नाना भावों का मध्यथर्तों
तत्व. छा ग्क््सा है ऊब कि जानकीचल्भ जी साहित्य का सीधा
संबंध सत्य या आध्यात्मिक तत्त्व से जोड़ देते हें। फहने की
आवश्यकता नहीं कि जानकोचल्म जी की अपेक्षा आचाये शुक्त की
ब्याख्या संकीर्ण' है ।
साहित्य का जगत् से संबंध जोड़ देने के कारण शुक्क जी
साहित्य के नैतिक और ध्याधवहारिक आदर्शों की ओर इतना अधिक
झुक गए कि उसके चिशुद्ध आध्यात्मिक »र भावमूल्क स्वरूप का
स्वतंत्र आकलन न कर सके। नवीन आलोचना से ही इस काये का
आर भ होता हैं, इसलिए ग्वभावतः & भी रसका स्वरूप सब लोगों को
स्पष्ट नहीं हुआ । कुछ लोग इस नवीन साहित्ययुग को सोग्दयचादी
ओर नवीन सप्रीक्षा को कछावादी समीक्षा कहने हैं । केचल सौन्दय
के लिए. सीन््दर्य अथवा कला के लिए कला का सिद्धाग्त आधुनिक
साहांत्यकों का नही है, यह अबतक स्पष्ट हो जाना था।
जानकीवल॒भ जी की उपर्युक्त व्याख्या इसके प्रमाण में उपस्थित
की ज्ञा सकती है। यह व्याख्या साहित्य में बिना किसी मतवाद का
आग्रह किण मी उसके मनोवेजानिक सेष्टव अर परिष्कार का आाग्रद
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