बापू को न बचा सका | Baapu Ko Na Bacha Saka

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Baapu Ko Na Bacha Saka by जगदीशचन्द्र जैन - Jagdishchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। २ | चाहे जो कुलं कहते, क्या उनके कटने से राष्ट्रध्म को तिलांजलि दी जा सकती थी ? क्था उनकी हर बात को सरकार या कांग्रेसी नेता पू् रूप से मान लेते थे ? अगर गांधी जी खुले पहरे के विरुद्ध थे तो गुप्रचरों की मदद से भी तो यह काम कराया ज्ञा सकता था, जेसा कि अन्य नेताओं की सुरक्षा के सम्बन्ध में आज कराया जाता है। इसके सिवाय कुछ पुलिस के कमचारी ओर गुप्तचर तो गांधी जी की प्राथना-सभा में रहते हीथ!।! २० जनवरी की बम दुघटना के पश्चात जब कि मदनलाल ১ ৮৯ के विस्तृत बयान पुलिस को मिल चुके थे और दिल्‍ली पुलिस के अधिकारी बम्बइ पुलिस के अधिकारियों स मिलने बम्बई आये य. ओर विशपकर २१ तारीख को लखक द्वारा चम्वः प्रान्तीय सरकार को पड़यन्त्र की सूचना मिलने के पश्चात अवश्य ही इनकी संख्या में वृद्धि की जा सकती थी । फिर एसा क्यों नदीं किया गया ? इतन मदान्‌ कतव्य की क्यों उपेत्ता की गड्‌ ! मदात्मा गांधी की हत्या कं पश्चात्‌ जव इन प॑क्तियोंका लखक फिर बम्बइ सरकार क मन्वरियां स मिला आर उनकी असावधानी की ओर उनका ध्यान आकपित किया तो उन्होंने उस जल का भय दिखाकर उसका मुँह वन्द करना चाहा ' क्या इसे ही जनतन्त्र कहते है ? कया यही नागरिक स्वतन्त्रता है ? क्‍या ये ही गांथो जी के सत्य ओर अर्दिसा के सिद्धांत है. जिनका अहनिश गुणगान किया जाता है? क्‍या स्वृतन्त्र भारत की आज़ादी के ये ही माठे फल है जिनका उल्लेख नताओं क भाषणों में किया जाता है ? स्व॒तन्त्र भागत की जनता को यह जानने का पूरा हक़ हे कि क्यों राष्ट्रपिता की सुरक्षा के सम्बन्ध में इतनी उदासीनता से




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