नवाब लटकन | Nawab Latkan

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Nawab Latkan by श्रीयुत 'अरुणा' - Shreeyut Aruna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवाब लटकन १३ साथ का पढ़ा ओर बढ़ा चलता-पुरज्ञा था। आकर बोला-- “मुझसे पूछो तरकीब | तुम सब क्या जानो ।” सग्ररहुसेन' ने बेठते हुए कहा--“अगर खदा ने चाहा, तो बहुत जल्द नवाब साहब भा खस्लानबहादुर हो जायेंगे /' “केसे ?? नवाब लटकन ने उत्सुकता से उसझही तरफ़ देखकर पूछा । “बस्च, अफ़सर लोगों को दावतें दीजिए; चंदों में रक़म खर्चे कीजिए, तो खानवहादुरी आपके रूवरू हाथ जाड़े खड़ी दिखाई देगी !” नवाब साहब बोले-- “बस, यही ठीक है। मुझे भी याद्‌ पड़ता है कि शब्बीरहसन ने लाट सादब को दावत दी थी एक दफ़ा ।? उसी दिन से नवाब साहव खानबढ़ादुरी के सुनहले ख्वाब देखने लगे, ओर उनके चापलूस यार-दोस्तों की तजबीजे चलने लगीं, उन निठल्लों को कोई काम तो था ही नहीं, नवाब साहब के पास द्वी दिन-रात पड़े रहते ओर टुकड़े तोड़ा करते । सरकारी खिताब पाने के शोक़ ने नवाव साहब को अंधा बना दिया । वह इसी धुन में लग गए । घन को पानी की तरह बहा देने का फ्रेसला करके हुक्कामों को दावतों पर दावतें देने लगे। जब कभी चंदे का सवाल आता; तो नवाब साहब उस मेदान में सबसे आगे ही दिखाई पढ़ते




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