भारतीय संस्कृति | Bhartiya Sanskriti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय संस्कृति 1 टत ह अठेत का अधिष्टान भारतीय संस्कृति में स्वेत्र अद्वेत की ध्वनि गूज रही है। भारतीय संस्क्रति में से अद्वत की मंगलकारी सुगन्ध आ रही है । हिन्दुस्तान के उत्तर में जिस प्रकार गोरीगकर का उच्च शिखर स्थित है, उसी प्रकार यहा संस्कृति के पीठे भी उच्च ओर भव्य अद्वत दर्शन हे। केवल्यास- जिखर पर व्रेठकर ज्ञानमय भगवान शंकर अनादिकाल से अद्वेत का इमरू बजा रहे है । शिव के पास ही शक्ति रहेगी, सत्य के पास ही सामर्थ्य रहेगी, प्रेम के पास ही पराक्रम रहेगा। अद्वत का अ्थ है निभयता। उदरे का संदे ही इस संसार में सुख-सागर का निर्माण कर सकेगा । भारतीय ऋषियों ने इस महान वस्तु को पहलाना । उन्होंने संसार को अद्वत का मन्त्र दिया। इस मन्त्र के बराबर पवित्र मन्त्र कोई दसरा नहीं ह । संसार में परायापन होने का ही मतलब हैं दुःख होना और समभाव होने का मतलब ही है सुख होना । सुख के लिए प्रयत्नशील मानव को अद्वत का पहला पकड़े बिना कोई तरणोपाय नहीं है । ऋषि बड़ी उत्कट भावना से कहते है कि जिन-जिन कै प्रति तुम्हारे मन में परायापन अनुभव हो उन-उनके पास जाकर उउ्हें प्रेम से गछे लगाओ ।




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