संत तुकाराम | Sant Tukaram
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
243
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हरि रामचंद्र दिवेकर - Hari Ramchandra Diwekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाराष्ट्र मक्तिभमं [ ह
धर्म के विचारों में एक प्रकार की हलचल मच गई थी । परमेश्वर का
स्वरूप एक ही है और उस के पैदा किए. हुए सब इन्सान एक से हैं;
ब्राह्मण, त्रिय, वैश्य, शुद्र इत्यादि जाति-मेद मनुष्य-कृत श्रौर श्रतएव
स्वार्थमलक हैं, इत्यादि कल्पनाएँ लोगों के मन में दृढ़मल होने लगी
थीं और इस प्रकार से हिंदुधम के कुछ मलभूत तत्वों पर ही चोर
पहुँचने लगी थीं। इन्हीं कारणों से भक्तिमा्ग का भारत भर में और
विशेषतः महाराष्ट्र-देश में बड़े ज़ोर से उत्थान हुआ ।
इस नए उत्थान के लिए अन्य प्रांतों की अ्रपेज्ञा महाराष्ट्र का
क्षेत्र कई दृष्टियों से अधिक योग्य था | मुतलमान वीरों का आक्रमण
उस समय केवल विध्याद्रि के उत्तर में ही था | इसलिये उत्तरी भारत
से भागे हुये लोन दिंध्याद्वि को पार कर दक्षिण के हिंदू राजाओं का
आश्रय लेते थे। दक्षिण श्रोर उत्तर दिंदुस्तान के बीच में होने से महा-
राष्ट्र देश में दोनों विभागों की श्रधिकताएं नहीं थीं। इसलिए प्रायः
सभी प्रकार के लोग यहाँ मिल-जुल कर रद्दते थे। मुसलमानी फक्कीरों
की भी आ्रामद-रफ़्त शुरू हो गई थी । भक्तिमाग का जो मुख्य स्थान
उत्तरी भारत में समझा जाता था, उस मथुरा नगर पर भी महमूद का
आक्रमण हो चुका था | हिंदू लोगों ने यह बात समझ ली थी कि उनके
देवताश्रों में शात्र श्रों का निवारण करने की सामथ्य नहीं है । और इसी
कारण से हिंदुधम के भिन्न-भिन्न पंथों का संगठन करने के प्रयत्न भी
होने लगे ये । बोधो के भगवान् बुद्ध को लोग भीकृष्ण का नया नवँ
अवतार सममने लगे थे । राक्षस तथा असुरों को अपने हाथों में श्रायुध
धारण कर मारनेवाले देवताओं की मूतियों का भी रूपांतर धीरे-घीरे
बुद्ध-समान निष्क्रिय इस्तों की देवता-मूर्तियों में हो रहा था। ऐसी
संक्रमणावस्था में महाराष्ट्र की दक्षिण सीमा पर एक नया ही भक्ति-
स्थान, एक नए ही देव के नाम से स्थापित हुआ । इस स्थान ने झाज
लगभग इजार वष तक महाराष्ट्र के भावुक लोगों को आकर्षित
किया हे । भिन्न-भिन्न जाति के भक्त अपनी-अपनी जाति का अभिमान
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