भाग्य - चक्र | Bhagya Chakra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला दृश्य ] पहंला अंक ११ পা পেশী ज পো শপ অপ তো ज त त 0 প্রি কারী শা পারা রশি সী পাতি শী শা শর শা পি আপি শপে আব পি সপ শী শী শর পি এ পি রতি পরি শী ৯ ০ পপি পা ৯ শত পতি তা পতি পতি শা তো শি আশ তি শী শা গত শি পপ শত ति कथ ज स ি পা আপা আপি পা আপি পি টি রী কারী অপি পি সর পপ অলী শা কি का अभाव नहीं, जो धनवानों की बात भी नहीं पूछते, महात्माओोंके चरण चूमते हैं । सच प्रछो, तो संसार ऐसे हढ्वी मद्दात्माओं के बढ पर खडा है । वनो नरक बहुत दूर नहीं है | शंकर०--छोग धम का सम्मान करते हैं, इसमे संदेह नहीं, मगर उसी समय तक, जव तक उसके पास पमे हैँ । परन्तु इधर ध्म की जेब खाली हुई, उधर रोगों की ओँ बदरू गई ! आपने मेरा अभिप्राय समञ्च लिया £ मगर तुम्हारी बातें हैं दिलचस्प | शकर०--एक दृष्टांत छीजिए | आपके पास चार आदमी अच्छे व्र पहनकर और मोटर मे बेठ कर आते हैं, ओर किसी आश्रम या अनाथालय या विद्यालय के लिए दान मांगते हैं। आप पांच-सात सौ रुपया दे देते हैं। मगर जब आपके पास कोई ब्राह्मण नंगे-पॉब नंगे-सिर, फटी-पुरानी धोती पहने आता है, तो पहले तो महाराज ! आपके दरबान उसे घर मे घुप्तने ही नहीं दंगे। ओर फिर अगर उनका दिल ग़रीब की मिनत-समाजत मे पिघक गया, ओर उन्होने कृपा करव उसे आपकी पेवा में उपस्थित होने का अवसर दे दिया, तो मी आप उसे क्या दे देंगे! दो-चार रुपये | और वह्द मी उपेक्षा से । में पूछता हूं, यह क्यों ए मांगने दोनों आए, धमे दोनों थे, जरूरत दोनों की सच्ची थी । शाम०--( दिलचस्पी छेते हुए ) कह्दे जाओ, में छुन रहा हूं । शकर०--मगर पहले आदमियोंको आपने सम्मान भी दिया, धन भी दिया। दूसरे आदमी को न सम्मान दिया, न धन दिया।




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