भाग्य - चक्र | Bhagya Chakra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला दृश्य ] पहंला अंक ११
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का अभाव नहीं, जो धनवानों की बात भी नहीं पूछते, महात्माओोंके
चरण चूमते हैं । सच प्रछो, तो संसार ऐसे हढ्वी मद्दात्माओं के बढ
पर खडा है । वनो नरक बहुत दूर नहीं है |
शंकर०--छोग धम का सम्मान करते हैं, इसमे संदेह नहीं,
मगर उसी समय तक, जव तक उसके पास पमे हैँ । परन्तु इधर ध्म
की जेब खाली हुई, उधर रोगों की ओँ बदरू गई ! आपने मेरा
अभिप्राय समञ्च लिया £
मगर
तुम्हारी बातें हैं दिलचस्प |
शकर०--एक दृष्टांत छीजिए | आपके पास चार आदमी अच्छे
व्र पहनकर और मोटर मे बेठ कर आते हैं, ओर किसी आश्रम या
अनाथालय या विद्यालय के लिए दान मांगते हैं। आप पांच-सात सौ
रुपया दे देते हैं। मगर जब आपके पास कोई ब्राह्मण नंगे-पॉब
नंगे-सिर, फटी-पुरानी धोती पहने आता है, तो पहले तो महाराज !
आपके दरबान उसे घर मे घुप्तने ही नहीं दंगे। ओर फिर अगर उनका
दिल ग़रीब की मिनत-समाजत मे पिघक गया, ओर उन्होने कृपा करव
उसे आपकी पेवा में उपस्थित होने का अवसर दे दिया, तो मी आप
उसे क्या दे देंगे! दो-चार रुपये | और वह्द मी उपेक्षा से । में पूछता
हूं, यह क्यों ए मांगने दोनों आए, धमे दोनों थे, जरूरत दोनों की
सच्ची थी ।
शाम०--( दिलचस्पी छेते हुए ) कह्दे जाओ, में छुन रहा हूं ।
शकर०--मगर पहले आदमियोंको आपने सम्मान भी दिया,
धन भी दिया। दूसरे आदमी को न सम्मान दिया, न धन दिया।
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