तांड लिखित राजस्थान का इतिहास | Annals & Antiquities Of Rajasthan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
104 MB
कुल पष्ठ :
1006
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची
परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी
शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957
व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत
विशेष योगदान --
राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হান साहब का जीवन चरित्र
भारतवर्ष में प्राचोन काल से ही इतिहास लिखने .की प्रथा न होने के “काररण सन् इसवो
की उन्नोसवीं शताददों के प्रारभ्म काल तक प्रसिद्ध राजपूत जाति एवम् राजपूताने का इतिहास
जानने के लिए कुं मौ योग्य साधन न थे । राजपूत जाति के परम हतेषो कर्नल जेम्् टांड ने जब
से राजपुताने में श्रना कदम रखा , तबसेहौी उनके चित्त में राजपूत जाति क इतिहास के
प्रभाव को दूर करने का विचार उत्पन्न हुआ , जिससे पच्चीस वर्षों के सतत परिश्रम से उन्होने पूर्णं
कर राजपूतों की कोति के जय-स्तश्म रूप राजस्थान के इतिहास को प्रकट किया । उन्होंने अपना
यह प्रपर्व ग्रंथ ऐसे समय में लिखा था , जब कि कुछ भी सामग्रो कहों से तेयार मिलने की सम्भा-
बना ही नहीं थी । >< >< टाँड साहब की इस पुस्तक में कई स्थानों पर परिवर्तन करने को
ग्रावश््यकता श्रवश्य रही । फिर भी , उनका यह ग्रंथ श्रव तक राजपूत जाति तथा राजपूताना के
लिए प्रमारण रूप माना जाता है ।
कर्नेल जेम्स टाँड , स्कॉटलेएड के निवासी मिस्टर जेम्स ठॉड के दूसरे पुत्र श्रौर हेनरी टाड
के पौश्र थे । उनका जन्म २० मार्च १७८२ ईसवी को इंगलेए्ड के इस्लिंगटन नामक स्थान में
हुआ था । टाँड साहब के सामा मिस्टर पेद्रिक हेठली ने , जो बंगाल के सिविलियन थे , उनको
हृष्ट दइखिडिया कम्पनीं के सेनिक उम्मेदवारों में भारती करा दिया था श्रौर वे सन्नह वर्षा की श्रवस्था
में बंगाल भेज दिये गये थे । उसके बाद उनकी बदलो मुहिम में जाने वाली जब-सेना में हो गयी
थी । उस मोके पर कुछ समय तक उनको एक जहाज की जल-सेना में काम करना पड़ा था | उसके
बाद कलकत्ता , हरिद्वार होते हुए उनका तबादला देहली के लिए हो गया था ।
इज्ीनियरिंग के कास में कशल होने के कारण सन् १८०१ ईसवी में देहली के पास पुरानी
नहर की पंमाइदश करने का काम उनको सौंप दिया गया । इसके बाद वे मिस्टर मसंर के साय
रहने वाली प्रंगरेजी सेना के एक श्रधिकारी बना दिये गये | उस समय तक योरोपियन विद्वानों को
राजपूताना श्रोर उसके श्रास-पास के प्रदेशों का भूगोल सम्बन्धी ज्ञान बहुत हो कम था श्रौर उनके
बनाये हृए नकक्नो मे प्रमुख स्थानों के स्यान मी तही-सही नये | मिस्टर ইলল ने उन मलों के
हांसोधन का कुछ काम किया था , परंतु ये नकशे सही न बन पाये थे | ১৯ ১৮ তাত साहब पेमा
दशा का कान करते हुए १८०६ ईसवो के जूत महीने में एक श्रंगरेजी राजदूत के साथ उदय पुर पहुँच
गये । इसी समय उनके सन सें यह भाव पैदा हुआ कि राजवुताना श्रौर उसके भ्रास-पास के प्रदेशों
का एक उत्तम नकशा तेयार किया जाय । इसी विचार से उनको जहाँ कहीं राजपूताना में जाने का
झवसर मिला , वे श्रपना बहुत-सा समय इसी काम सें खर्च करने लगे श्रोर उन प्रदेशों के इतिहास,
जनधरुति श्रौर रिला-लेखो का भी वे यथासाध्य संग्रह करने जाते थे । इस इतिहास की सामप्रीके
संग्रह का कार्य यहीं से आरम्भ हुआ ।
थोड़े अ्ररसे में टाड साहब ने इस विस्तृत प्रदेशों के इतने नकशे तेयार किये कि उनकी
ग्यारह जिल्दें बन गयों । उस समय राजपताना में मराहठों का जोर बढ़ा हुआ था झौर यहाँ के
रईसों तथा सरदारों में भी परस्पर फूट फेली हुई थी। मराठों के प्रातंक झौर सरवारों की फूढ
।
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